पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३२४

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गवनमेंट की व्यापार-व्यवसाय-चिपक नीति । ३०५ इन्हीं विदेशी व्यापारियों के हाथ में चला गया ! नवाब को भाल पर जा महसूल मिलता था उसके कम हो जाने से धंगाल, बिहार और उड़ीसा की मालगुजारी घटते घटते थहुत ही घट गई । अँगरेज-व्यापारियों ने अपने माल पर महसूल देने से इनकार किया सी ते कियाही, उन्होंने प्रज्ञा-पीड़न भी शुरू किया । नवाब के अफ़सरों और अधिकारियों तक के साथ थे ज़ियादती करने लगे। जिन चीज़ों को व्यापार करने की उन्हें इजाज़न न थीं उनकीभो वै व्यापार करने लगे। हर शहर, हर कसबे, हर गांव में अँगरेज़-व्यापारियों के एजंट और गुमाश्ते पहुँच गये । उन्होंने मनमाने भाव पर माल स्वरोदना और वैचनी अरंभ किया, जिसने उनके हाथ माल बेचने से इनकार किया उसे सज़ा देना शुरू किया; यदि नवाच के अफ़सरों ने कुछ दस्तंदाज़ी की तो उनकी भी खबर लेने से ये छग बाज़ न आने लगे । कलकत्ते से क़ासिमबाज़ार तक ही नहीं, ढाके और पटने तक सब कहीं इन लोगों ने अराजकता फैला दी। नवाब ने कई दृफे इन लोगों की शिकायत कलकत्ते के अँगरेज़-गवर्नर से की, पर कुछ लाभ न हुआ। जहां इन लोगों की आमद-फ्त अधिक थी वहां के मनुष्य अपना घर द्वार छोड़ कर भगने लगे , जिन बाजारों में पहले कंचन बरसता थ। वे धीरे धीरे उजड़ने लगे ; हर पेशे के आदमियों पर ससूती होने लगी । | जिस्व मंडी या जिस बाज़ार में अँगरेज़ व्यापारियों का गुमाश्ता पहुँचता था घहां पह पक जगह जाकर ठहर जाता था। उसे वह अपनी कचहरी कहता था ! हर गुमाश्ते की कचहरी अलग अलग थी । वहीं बैठे बैठे बहे अपने चपरासियां और हरकारों से दलाल और जुलाई को बुला भेजता था। उनसे वह एक दस्तावेज़ लिस्नाता था कि इतना माल, इतने दिने जाद, इस क़ीमत पर हम देंगे। इसके बाद उसे थोड़ा सा रुपया पेशगी दे दिया जाता था। यदि जुलाहा या कोली दस्तख़त करने से इनकार करता था तो ज़बरदस्ती उससे दस्तखत कराये जाते थे ? यदि यह पेशागी रुपया न लेता था तो वह खूब ठोंका जाता था। इस तरह उसकी पूजा है। चुकने पर रुपये उसके कपड़े में जबरदस्ती वाँध दिये जाते थे । ये लोग या गुमाइते साहिब के गुलाम हो जाते थे, और लोगों का काम न करने पाते थे । और अनेक शारीरिक कष्ट सहने पर भी अपने कपड़े की उचित क़ीमत से वंचित रखे जाते थे । बाज़ार में जो माल १०० रुपये की बिक सकता था उसकी