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सम्पत्ति-शास्त्र ।

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अनेक बाते की जाँच की । इस देश का ज्ञान रखनेवाले कितने ही अँगरेज़अधिकारियों की साक्षी ली गई। इस कमिटी की कार्रवाई के कागज़-पन्न पढ़ने लै दुःख होता है। कमिटीने वार बार इस बात के ज्ञानने का यत्न किया कि किस तरफ से विलायती कपड़े का खर्च हिन्दुस्तान में बढ़ सकता है और किस तरकीब से वहां कपड़ा धनना बन्द हो सकता है। इस फार्थय-सिद्धि की यदी सब से अच्छी तरक्कीच साची गई कि हिन्दुस्तानी कपड़े पर इतना महसूल लगा दिया जाय कि उसका विदेश जाना वन्द हैं। जाय। यह तरकीब शीही काम में लाई गई और इतना भारी कर लगा दिया गया कि हिन्दुस्तानी कपड़े के व्यापारियों और व्यवसायियों का कारोबार चैट सा गया । हिन्दुस्तानी मसलिन यदि विलायत भैज्ञा जाय तो १० फ़ीसदी महसूल अँार यदि घद चिलायतही में गन्नने के लिए हो, बहा नै अन्यत्र भेजे जाने के लिए न हा, ते २७ फ़ीं सदी ! यह २७ फ़ीसदी कुछ दिने में बहकर ३१ फ्री सदी हो गया ! विलायत में ग्यत्र होनेवाले फैलिके नामक छापे हुए रंगीन कपड़े पर ७८ फ्री सदी तक महसूल लगाया गया अर्थात् १०० रुपये की चीज़ पर ७८ रुपया महसूल । उसमें यदि भेजने आदि का वर्च जाड़ लिया जाय ते १०० रुपये का कपड़ा विलायत में फैाई २१० का पड़े !!! इस समय तक भी हिन्दु स्तानी फपड़ा विलायती कपड़े के मुक़ाबले में सस्ता विकता था ! लन्दन में हिन्दुस्तानी कपड़ा चहां के कपड़ें की अपेक्षा ६० फ़ी सदी कम क़ीमत पर बिफ सकता था और इस भाव भी बैंचने से मुनाफा होता था। इसी विक्री को मारने के लिए फ़ौ सदी ७० और ८० भइसूल लगाया गया । यदि ऐसी अनुचित कारवाई न की जाती ते हिन्दुस्तानी कपड़े की आमदनी विला'यत में कभी अन्द् न होती और मैनचेस्टर के पुतलीघर फव के चन्द हो गये। होते। पर जे जापा–जे कारग्यानेदार-वही क़ानून वनाने वाले। उन्होंने अपने लाभ के लिए हिन्दुस्तानी कपड़े पर कड़े से कड़ी महसूल लगा कर यहां के व्यवसायि के मुंह का ग्रास छीन लिया । यदि हिन्दुस्तान में भी विदेशी माल पर महसूल लगाने की शक्ति होती है। चह भी इन देश में आने वाले चिलायती कपड़े पर महसूल लगा कर उसकी आमदनी रोक देता । पर ऐसा करना उसके लिए असम्भव था । विलायतो व्यवसायियों ने अपने माल पर कुछ भी महसूल न रखकर, अथवा नाम मात्र के लिए उस पर महसुल लगाकर, उसे हिन्दुस्तान के पहुँचाया, और