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सम्पति-शास्त्र

इससे स्पष्ट है कि इस देश में गाय, घोड़ा, सूप, कपड़ा और अनाज देकर' चीजें बदली अर्थात् माल ली जाती थी। और यह रीति' अब तक देहात में थोड़ी बहुत प्रचलित है ! किसानही नहीं, और लोग भी अनाज, देकर गुड़, नेल, नमक, मसाला, तरकारी आदि माल लेते हैं । बढ़ई, लुहार, नाई, धोबी पादि को भी उनके परिश्रम का बदला अभ भी पे बहुधा 'अनाज ही के रूप में देते हैं।

श्रतएघ रुपया-पैसा सम्पत्ति का दर्शक चिह्न है। पदार्थों के पारस्परिक बदले का यह एक साधन है। रुपये से पदार्थों का बदला करने में भी सुभीता होता है और सम्पत्ति की इयत्ता भी मालूम हो जाती है। इससे यह स्पष्ट है कि यदि कोई कहे कि अमुक आदमी बीस लाख का मालिक है तो उससे यह न समझना चाहिए कि वोस लाख के ताड़े उसके घर में रक्खे हैं। नहीं, इससे इतनाही अर्थ निकलता है कि घर-हार, खेत-पात, वन-याभूपण आदि सब मिलाकर पीस लाख रूपये की कीमत की सम्पत्ति उसके पास है ! यदि रूपये पैसे ही की गिनती सम्पत्ति में होती तो जिनके पास रुपया नहीं, पर लाखों भन अनाज या हजारों गाँठ कपड़े को हैं, वे निर्धन समझे जाते!

यद्यपि विनिमय-साध्यत्ता ही सम्पत्ति का प्रधान लक्षण है, तथापि दूर तक विचार करने से और भी कई बात' उसके अन्तर्गत आ सकती है। सारी प्रधान और प्रधान बानों के खयाल से सम्पत्ति का व्यापक लक्षण और तरह से भी हो सकता है। इसे लक्षण नहीं, किन्तु एक प्रकार की व्याख्या कहना चाहिए। इसके अनुसार उन चीज़ों की गिनती सम्पत्ति में है।

(१) जिनका पाना सम्भव हो।
 
(२) व्यावहारिक दृष्टि से जिनको ज़रूरत हो। अर्थात् ज़िन्दगी से

सम्बन्ध रखने वाली जरूरतों को पूरा करने के लिए जिनकी इच्छा मुनासिव तौर पर की जा सकती हो। यदि कोई मसभ्य जंगली आदमी अपने शत्रु को मार कर उसकी खोपड़ी प्राप्त करना चाहे तो उसकी यह इच्छा मुनासिब नहीं मानी जा सकती। पयोंकि इस तरह की इच्छा करना सदाचार, सदू-

व्यवहार और सुनीति के विरुद्ध है।
 
(३) जिन्हें प्राप्त करने का हक मनुष्य को हो ।
 
(४)जो विनिमय-साध्य हों।