पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३३०

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गवर्नमेंट की व्यापार-व्यवसाय-विषयक नीति । ३११ हिन्दुस्तान प्रानै घाली खास ख़ास चीज़ पर १८५२ में जी महसूल लगता था उसकी तफ़सल हम नोचे देते है : है , • १ विलायत से आने वाली कितावे २ और देशों से आने वाली किताबें ३ सूती और रेशम कपड़ी, विलायती ,, और देश का ४ सूत--विलायती ५ सूत--और देशों का ६ धात–चिलायती ७ धात—और देश की ८ अनी कपड़ा-चिलायती ९ कनी कपड़ा और देशों कई हिन्दुस्तान से विलायत जाने वाली चीज़ पर जा महसूल लगता था उससे बहुत कम विलायत से आने वाली उ चीज़ों पर लगता था । हिन्दुस्तानी चीज़ों का विलायत जाना रोकने के लिए यह् बन्दोबस्त था । यह पहली बात हुई । फिर, चिलायत से मुकाबला करने चाले और देशे की चीज़ों पर दूना महसूल लगा, कर उनका ईन्दुस्तान आना रोका गया । यह दूसरी बात हुई । म fन्दुस्तान में घास, सूत, कपड़ा, किताबें बेचें; और कई देश न वैचने पावे ! मतलब यइ । इस का परिणाम यह हुआ कि १८३४-३५ में सारे येाप से जितना माल इस देश में आया था, १६ वर्ष बाद, अर्थात् १८५० में, उससे दूना आय–टूना क्यों दूने से भी अधिक । बेचारे हिन्दुस्तान के इस माल का मेल अधिकतर अनाज, राई, रेशम और ऊन आदि कच्चे बाने ही की इतनी से चुकाना पड़ा; क्योंकि और माल भेजने का तौ द्वार ही धिलायत घाले नै बन्द सा कर दिया था । फिर मिचने का माल उसने विदेश से पाया उससे अड़ो क़ीमत का उसे विदेश भेजना पड़ा । जिसे "होम चार्जेज़" कहते हैं उसे मद में उसे बहुत रुपया देना पड़ा, जिसके बदले माल के रूप में उसे कुछ भी न मिला। हिन्दुस्तान के विदेशी व्यापार का अश अकेॐ विलायत से था । अपच और देशों की अपेक्षा विलायत' घालीं है ही इसे व्यापार से अधिक लाभ उठाया।