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सम्पत्ति-शास्त्र।

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३१२ सम्पत्ति-शास्त्र। १८५९ में लाई केनिंग के हिन्दुस्तान पर दया प्राई । उन्होंने चिल्लायत, अर्थात् 'गालस्तान, से आने वाली चीज़ों पर लगनेवाले महसूल के बढ़ाकर याप के अन्यान्य देशे की चीज़ों पर लगनेवाले महसूल के बराबर कर दिया । इस पर बिलायती व्यवसायियों ने हाहाकार मचाया । अतएब दूसरे ही साल, १८६० में, हिन्दुस्तान के आयात माल पर का मस्सूल फिर घटाया गया । और हिन्दुस्तान से जानेघालै कनै वाने पर जा महसूल या ध प दमही' उठा दिया गया ! फिर क्या था, विलायती व्यापारियों की खुशी का ठिकाना न रही । १८७० ईसच में फिर कुछ फेर फार हुआ । इस फेरफार से विलायत चाली में फिर असन्तोष फैला । इससे १८७१ में दुबारा फेरफार करना पड़ा । यह दूसरी दफ़ का फेरफार बहुत सेाच समझ कर किया गया। हिन्दु स्तान के लाभ-हानि का ग्याल रखा गया। साथही चिलायतवाले की जा शिकायतें मुनासिब थे। उन पर ध्यान भी दिया गया । हिन्दुस्तान से विदेश जानेवाले माल पर महसूल है। लगा, पर इतना नहीं कि हिन्दुस्तानी व्यापारियां की शिकायत की जगह है। उधर विदेश से अनैबालै माल पर भी इतना महसूल अल्ला गया जो विलायतवाली की नागचरि न हो । विलायत से आनेवाले सृन पर, ३१ फ़ो सैकड़ा और सुती कपड़े पर ५ । सैफड़। महसुल लगाया गया | | इसी बीच में चम्बई में कपड़े के दे। एक कारखाने खुले । उनमें कपड़ा तैयार होने लगा । इस बार से लंकाशायर के जुलाह ने समझा कि अब हमारे कपड़े का ग्वए ज़रूर है। फम हो जायगा । चारों और से उनीने हैरा मचाना शुरू किया 1 उन्होंने अज़ीन अज्ञीच दलीलें पेश कीं । फने लगे, चिलायती सूत प्रार कपड़े पर जो इतना महसूल लगाया गया है वह हिन्दुस्तान के व्यापार के बहाने उसकी रक्षा करने के लिए लगाया गया है । इससे चिढ़ायत्त का बड़ा नुक़सान है। लार्ड संलिस्वरी उस समय सेभेटरी अब स्टेट थे । उन्होंने यहां के गवर्नर जनरल लाई नार्थक कर सलाह दी कि चिलयिती सूत और कपड़े पर को महसूल कम पर दी । पर लाई नार्थब्रुक ने ऐसा करना अनुचित समझा । उनके वाद, १८७९, में, जब लार्ड लिटन हिन्दुस्तान के गवर्नर जनरल थे. फिर विलायत के कर्ता-धर्ता महाशयां ने ज़ोर लगाया और लार्ड संलिस्वरी ने फिर दबाव डाला अन्त की लाडेलिटन ने विलायत के मेाटे कपड़े पर महसूल विल