पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३३२

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गवर्नमेंट की व्यापार-व्यवसाय विषयक नीति । ३१३ फुल हो उठा दिया। विलायतवालां के पैर में जा इस कारण शूल उठा था कि हिन्दुस्तान में कपड़े के पुतली बर, बढ़ने जा रहे हैं से शन्त हो गया । हिन्दु स्तान की औद्योगिक उन्नति से ही उन्होंने अपनी हानि और उसको अवनति से ही अपना लाम समझा । इसी बात है। माना और भी अच्छी तरह स्पष्ट करके दिखलाने के लिए. १८८३ ईसवी में, चिलायत से आनेवाले नमक और शराब के छाड़कर प्रायः और सब चीज़ पर फा महसूल एक दम छी उठा दिया गया । हिन्दुस्तान से बाहर जानैबाले भाल पर बेशक महसूल लता रहा। . काई १२ वर्ष तक यह दशा रही। इसके बाद फिर विलायत के आयात • माल पर कर लगाया गया । तत्र से आज तक गवर्नमेंट की यह नीति रही है, मैर अब तक है, कि विलायती माल पर इतना महसूल न लगाया जाय फि उसकी अमिदनी में खलल पड़े। पर उसके मुकाबले में हिन्दुस्तान से बाहर ज्ञानेचाले भाटे से माटे कपड़े पर भी महसूल लगता है। हिन्दुस्तान में फलकाराने अभी फल से खुले हैं। उनके मालिक के उत्साह देने के लिए इस उद्योग की अड़ जमाने के लिए गर्वनमेंट के चाहिए था कि यहां की धनी हुई. विदेश जाने घालो, चीज़ों पर कुछ भी महसूल न लगाती । पर उसने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा । विलयत के व्यापारी चाहते हैं कि हिन्दुस्तान सिर्फ अनाज और तेलहन आदि हो भेजें , वह सिर्फ रुई, ऊन और मील आदि कच्चा वना विलायत भेजकर वहां के कारखानेदारों को लाभ पहुँचाये । बुशी की बात है कि कुछ समय से गवर्नमेंट यहाँ बों के उद्योगधन्धे सिद्राने की चेष्ट्री करने लगी है। यहाँ के नवयुवक की विदेश मैज्ञ फर उन्हें औद्योगिक शिदा दिलाने का भी अब घह प्रयत्न कर रही है। ईश्वर फरे उसकी यह नीति दिनों दिन अधिक उदार-भाव धारण करती जाय, जिसमें प्रज्ञा को घह मैर भी अधिक भक्ति-भाजन हो जाय। पर औद्योगिक शिक्षा और औद्योगिक कारोबार के लिए हम लोगों के गवर्नमेंट हो पर अव उम्बित न रहना चाहिए। हमें चाहिए कि हम खुदही इन वार्ता के करने का यक्ष करें।