पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३३३

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३१६ सम्पत्ति-शास्त्र । सात परिच्छेद । बन्धनरहित और चन्धनविहित व्यापार । विदेश से जितना व्यापार होता है वह या तो उन्धनरहित होता है या घन्धन-विहित ! अँगरेज़ी में जिले "फ़ी टेड” (Free Trad:) कहते हैं उसे हिन्दी में अवधि, अप्रतिवद्ध, असंरक्षित, अथवा बन्धनरहित व्यापार कह सकते हैं। अथवा यदि उसे खुला हुअर या स्वतंत्र व्यापार कहे तो भी फद्द सकते हैं । और जिसे अँगरेज़ी में प्रोटेक्टेड हेड" (Protected Trade ) कहते हैं उसे हिन्दी में संक्षिप्त प्रतिवद्ध, अथवा वन्धनचिहित व्यापार कह सकते हैं । इन्हीं दोनों तरह के व्यापारों के चिपय का थोड़ा सा विवेचन इस परिच्छेद में करना है। | दो देशों के दरमियान जो व्यापार होता है उसे कोई कोई देश किसी तरह की कृत्रिम किसी तरह की बनावटी–घाधा नहीं पहुंचाते । उसे बिना किसी प्रतिवन्ध के होने देते हैं। आयात या यात भाल पर कर लगा कर उसकी आमदनी था रपतनी को रोकने या कम करने का कोई यक्ष नहीं करते, अधचा यदि करते भी हैं तो इतना नहीं कि माल की आमदनी या रम्तनी में बाधा उत्पन्न हो । अपना माल दें अन्य देश को स्वतन्त्रतापूर्वक जाने देते हैं मौर अन्य देश का माल, जिलक्रीं उन्हें ज़रूरत है. बैं-रोकटोक अनै देते हैं। इसी का नाम धन्धनरहित व्यापार है। विपरीत इसके जो देश सपनै यहाँ के कला-कौशल उद्योग-धन्ध को तरक्को देने के लिए विदेशी माल पर कर लगा कर उसकी आमदनी को रोकने या कम करने की चेष्ट करते हैं उनके यहां का व्यापार बन्धन-विहित व्यापार कहलाता है। आवश्यकता होने पर पैसे देश अपने यहां के माल के लिए विदेश जाने का सच तरह का सुभीता भी करते हैं। उस पर कर नहीं लगाते, या लगाते हैं तो बहुत कम । व्यापार का प्रधान उद्देश यह है कि जो माल अपने देश में नहीं तैयार हो सकता, अथवा जिसकी तैयारी में अधिक लागत लगती हैं, वह दूसरे देशों से लिया जाय। क्योंकि जो व्यावहारिक चीज़ अपने यहां नहीं पैदा होता, पर जिनके बिना आदमी का काम नहीं चल सकता, उन्हें ज़रूरही लेना पड़सा है। इस दशा में यदि घे बाहर से न मॅगाई जायगी तो सव लोगों को इन