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૩ર૭ सम्पत्ति-शास्त्र । फि विदेशी मञ्जरों के पेट की रोटी छिन कर स्वदेशी मज़दूरों के मिलेगी, यह समझना भ्रम है दूसरे देश का माल लेने से उसे तैयार करने वाले मज़दूरों का पालन-पोपण नहीं होता। वहां पूजी है; अतएव घहां माल तैयार होता है । घहां के मज़दूरों के भेजन-वल वहाँ की पूंजी से प्राप्त होता है, अपने देश की पूंजो से नहीं 1 माल लेने के पहले ही वह विदेश में तैयार हो चुका है और मज़दूरों का मज़दूरी मिल चुकती है; आप के रुपये से उ मज़दूरी नहीं मिलतो । विदेशो माल न लेने से सिर्फ इतना ही होता है कि अपने देश के एक वर्ग के मज़दूरों का काम उनके हाथ से निकल कर दुसरे वर्ग में मज़दूरों के मिल जाता है। जव तफ विदेश से माल आता था तब तक उसके बदले में देने के लिए हमें मैर कोई माल तैयार करना पड़ता था । उससे उन मज़दूरों का पालन होता था जो उस धन्धे में लगे रहते थे। अव यदि विदेशी माल न आबेगा तो उसके बदले में देने के लिए हमें भी माल न नैयार करना पड़ेगा। परिणाम यह होगा कि हमारे देश के मज़दूरों के काम न मिलेगा। ज्ञां जो भाल हम विदेश से नै थैउसे यदि अपने ही देशमें तैयार करने लगे तो बेफार मज़दूरों में से कुछ को काम मिल जायगा। संभव है। कुछ को नहीं, सभी को मिल जाय । पर जो माल थोड़ी मेहनत और थोड़ी पूँजी से तैयार किये जाने के कारण हम सस्ता मिलता था वही पध में अत्रिक मेहनत और अघिफ पूँजी से तैयार करना पड़ेगा । इस कारण बहुत करफै जितने मज़दूरों को पहले काम मिलता था उतनों को अब न मिल सकेगा। इमारी पूजी पहिले की अपेक्षा अधिक तो हो न जायेगी । वह तो जितनी की इतनी हाँ देगी । फिर मजदूरों का अधिक पालन-पोषण किस तरह हो सकेगा । चल पूजी से ही मजदूरों को मज़दूरी मिलती है न? पर पूँजी अव अधिक खर्च होगी। इससे मजदूरों को पहले की अपेक्षा कमी मजदूरी मिलना संभव हैं। अधिक नहीं। । यहां पर एफ और बात का भी विचार करना ज़रूरी है। विदेश से आने घाले माल में से कुछ माल की आमदनी यदि बन्द कर दी गई, या उस पर महसूल लगा कर उस की आमदनी में बाधा डाली गई, परन्तु जो माल अपने देश खै विदेश को जाता है उसकी रफ्तनी न बंद की जा सकी, तो प्या परिणाम होगा | कपना कीजिए कि हिन्दुस्तान ने विलायत से आने घाले विलास-द्रव्यों की आमदनी रोक दी। पर जो अनाज बह विलायत