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सम्पत्ति का स्वरूप।


सम्पत्ति का लक्षण और उसके स्वरूप का निदर्शन हो चुका। अब इस बात का विचार करना है कि सम्पति-प्राप्ति के मार्ग कौन कौन से हैं? अथवा यों कहिप, कि सम्पत्ति होती कितने प्रकार की है- उसके विभाग कित्ताने हो सकते हैं? स्थूल-रीति से सम्पत्ति-प्राप्ति के तीन मार्ग हैं। अर्थात् तीन तरह से सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है । यथा --

(१) भौतिक चीज़ों से। उदाहरणर्थ-सोना, चांदी, भूमि, घर, धृक्ष आदि साकार चीज़ों से।
 
(२) मानसिक शक्तियों से । उदाहरणार्थ-उधोगशीलता.शिल्प-पुण्य,

कार्य-कुशलता आदि से । गीत, घाघ, वैद्यक, ज्योतिप, लेखन-कला आदि की बदौलत भो सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है। अतएव इन विधाओं और फलानों का मान भी विनिमय-साध्य वस्तुओं में गिना जा सकता है। जो लोग श्रमजीवी है-क्षी मेहनत-मजदूरी करके पेट पालने हैं-उनके श्रम की गिनती भी सम्पत्ति में है. क्योंकि मजदूरी के रूप में जो कुछ उन्हें

मिलता है वह उनके श्रमही का बदला है।
 
(३) अशरीरी अर्थात् निराकार स्वत्व (हरू) से । उदाहरणार्थ-

फिसी चीज़ को उधार वेचकर पीछे से उसकी कीमत पाने के हक, या रूपया- पैसा उधार देकर यथासमय उसे वसूल कर लेने आदि के हत से। इस प्रकार यद्यपि सम्पति दीन तरह या तीन भागी से प्राप्त हो सकती है सथापि पिछले दो मागी से प्राप्त होने वालो का विचार सम्पति-शास्त्र में नहीं होता । क्योंकि यह सम्पति गुणाजात है। गार गुम ऐसी चीज़ नहीं जो गुगी से अलग हो सके। अर्थात् गुण चिनिमय-साध्य ना है, पर अपने बदले गुणी को सम्पत्ति प्राप्त करा कर यह फिर भी उसीके पास रह जाता है । जो गुणी के गुरु का बदला देता है वह गुणा को गुणी मे अलग करके अपने अधीन नहीं कर सकता । गुग्ण से यह जितना फ़ायदा उठाता है उतने

का बदला देकर ही उसे सन्तोष करना पड़ता है।
 

इससे सिद्ध हुआ कि जो विनिमय-साध्य चीजें, विनिमय किये जाने पर, अपने स्वामी से अलग हो सकती हैं उन्हीं का विचार और विवेचन सम्पत्ति शास्त्र में होता है। परन्तु इस नियम में एक अपवाद है। वह यह