पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४०

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बन्धनरहित और इन्धनविहित व्यापार । ३२१ भैज्ञता है उसकी रफ्तन न बंद कर सका। क्योंकि बिना अनाज बेचै.किसान आदमी सरकारी लगान नहीं दे सकते। अतएव अनाज उन्हें घेचनाहीं पड़ता है। उधर विलायत घालों को हमेशा ही अनाज़ की ज़रूरत रहती है। वे हिन्दुस्तान से अपने लिए ज़रूरही अनाज खरीद करेंगे । इस दशा में हिन्दु स्वान का माल विलायत अधिक जाय। पर उसके बदले वहां से कम आचेगा। अतएव जितना माल गलैंड अधिक लेगा उतनी की क़ीमत उसे नक़द देनी पड़ेगी । फल यह होगा कि हिन्दुस्तान में नद रुपये की संख्या बढ़ जायगो और अनाज महँगा हो जायगा । उधर विलायत में रुपये। का संग्रह कम हो जाने से व्यवहार की चीजें सस्ती बिकने लगेंगी और जिन.. विलास-व्रज्यों की आमदनी को हिन्दुस्तान ने रोक दिया है उनके सिवा कपड़ा आदि और चीजें हिन्दुस्तान को सस्ते भाव मिलने लगेगी । अर्थात् यदि ज्ञबरदस्ती महसूल लगा कर एक प्रकार के माल की आमदनी रौकदी जायगी तो दूसरे प्रकार का माल कुछ सस्ता मिलने लगेगा । परन्तु थह फ़ायदा तभी तक होगा जब तक दूसरे देश ने अपने देश से जाने वाले माल पर महसूल नहीं लगाया । यदि दोनों देश एक दूसरे के भाल पर महसूल लगो देंगे तो दोनों को व्यर्थ हानि उठानी पड़ेगी । | बन्धन-विहित व्यापार के पक्षपाती इस तरह के व्यापार से चार प्रकार के लाभ बतलाते हैं। यथा ( १) वन्धन-विहित व्यापार से स्वदेशवासी जनों को अन्न-वस्त्र के लिए मुहताज नहीं होना पड़ता; खाने, पीने और पहभने मादि को चीजें वे स्वदही पैदा कर सकते हैं। (२) अधिक खर्च कर के भी देश की रक्षा करना मनुष्य का कर्तव्य है; इससे देश में स्वातन्त्र्यभाच की वृद्धि होती है। ( ३ ) जहां कच्चा बाना उत्पन्न होता है वहीं माल तैयार करने से कच्चे माल के भेजने और तैयारमालके लाने में जो व्यर्थ खर्च पड़ता है वह बच जाता है। (४) जिस देश में अनज अधिक पैदा होता है वह देश यदि अपना अनाज विदेश के अधिक भेजेंगा ते उसे अधिक पैदा भी करना पड़ेगा। इससे ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बहुत जल्द क्षीण हो जायगी और देश के सार्वकालिक हानि पहुँचेगी । इन बाते। पर यथाक्रम संक्षिप्त विचार की जरूरत है। पहले लाभ के विषय में कल्पना कीजिए कि इंगलैंड से कपड़ा मँगाने में घह सत्ता पड़ता है। इससे करोड़ों रुफ्ये का कड़ा हर साल इंगलैंड से