पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४१

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३२२ । सम्पत्ति-शास्त्र । यहां आता है। यदि यह स्थिति ऐसी ही रही ती दिने दिन कपड़े की आमदनी बढ़ती जायगी और जो दा चार कपड़े के कारख़ाने इस देश में हैं । बन्द हो जायेंगे । लौ कुछ दिनों में कपड़ा अनाना धिलकुल ही भूल जायेंगे। परिणाम यह होगा कि हिन्दुस्तान के कपड़े के लिए हमेशा इंगलैंड का मुह तजि रहना पड़ेगा । इस दशा में इंग्लंड यदि अपने कपड़े का भाव बहादे ता भी हिन्दुस्तान के उससे कपड़ा लेना ही पड़े, यांकि उसे खुद बनाने का सामथ्र्य नहीं । और यदि किसों और देश से ३ ग्लैंड की लड़ाई ठून गई और वहां से कपड़े का आना इस या और किस कारण से बन्द हो गया ते हिन्दुस्तानबाली के नंगे रहने की नौबत आवैगी । परन्तु सोचना चाहिq कि आज कल की स्थिति में ये बात संभव है या नहीं। इस समय काइ देश ऐसा नहीं जिसे अन्य दैश में व्यापार करने का हुक में प्राप्त है । ईगलड ही से सारा कपड़ा हिन्दुस्तान का लेना चाहिए । इस तरह का कोई नियम ता हैं नहीं । यदि ईगलैड से कपड़ा ना बन्द है। जाय, या घटुव महँगा मिलने लगे, ता हिन्दुस्तान के निवासी जापान, अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी अादि से कपड़ा मैंगर सकते हैं। जब इन देशों को मालूम हो जायगा कि हमारे कपड़े का जप हिन्दुस्तान में है और वहां से व्यापार करने में अपना फ़ायदा हैं तेधेड़ते हुए अपना कपड़ा हिन्दुस्तान पहुंचायेंगे । देश की रक्षा के लिए अधिक खर्च करना पड़े तो भो अगापीछा न करना चाहिए । जब देश ही अपना न रहे। तब उसकी उन्नति क्या होगी वाक ! पर यह बात राजकीय व्यवहारों से अधिक सम्बन्ध रखती है। इससे • इसका विचार यहां नहीं हो सकता । स्वतन्नु देशे के लिए गौला, बारूद, ताप, चन्दक, जहाज़ अरदि अपने ही यहां तैयार करना उचित है । इनके लिए अन्य देशै पर अबलम्ब करना अच्छा नहीं। ऐसे मामलों में स्वयं की कमी-वैश का विचार नहीं किया जाता । परन्तु हिन्दुस्तान पेखे पतंत्र देश के लिए इन चीजों के बनने से क्या लाभ ? चाहे वे यहां बनें, चाहे गले में ! धात एक हो है । Bाने हालत में खर्च यद्यपि हिन्दुस्तान हो के सिर रहैग्ज पर चिशेपता कुछ न होगी। | फच्च वाने से अपने हो देश में माल तैयार करने से आने जाने का अर्थ जरूर धच जाता है। पर स्वदेश में भाल तैयार करने पर भी यदि विदेश का माल सस्ता पड़े तो क्यों न उसे लेना चाहिए ? सम्पत्ति-शास्त्र के किन