पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४३

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३४ सम्पत्ति-शास्त्र । उसने इस देश के भाल पर कड़ा कर लगा कर उनकी आमदनी को को ? फ्य इस प्रकार व्यापारप्रतिबन्ध करके उसने अपने कला-कौशल और उद्योग धन्धे की वृद्धि को ? इसके पहले परिच्छेद में इँगलंड फी व्यापार-चिपयक जिस नीति की अलेाचना की गई है उसे अव आए याद कीजिए। उसे विचार की कसौटी पर फसिए और देखिए कि उसका क्या फल हुआ।। चन्धनहित व्यापार करना यद्यपि स्वाभाविक है, तथापि जिस देश में उद्योग-धन्धे की अवस्था अच्छी नहीं, जिसे यार-व्यवसाय में अपने से अधिक उद्योगशील अरि व्यापार वृद्ध देश का मुक़ाबला करना है, उसे कुछ काल के लिए व्यापारबन्धन ज़रूर करना चाहिए । अस्ट्रेलिया की तरह जो देश थैाड़े ही समय से बाद छुपा हैं , अथवा हिन्दुस्तान की तरह हजारां च से आबाद हुए जिस देश को प्रायः सारो ज़मीन जोतो जाचुकी है, वहां यदि खेती के सिवा और किसी उद्योग-धन्धे को वृद्धि करना अभीष्ट हो तो वन्धनविहित व्यापार की प्रथा जारी करने से बहुत लाभ हो सकता है। ऐसे देश में नये नये धन्धे करने का है जिनना अच्छा मुभना हो, तथापि बहुत दिनों से उद्योग-धन्धा करनेवाले देशों से मुक़ाचला करने का सहमध्ये उसमें कदम नहीं आ सकेंगा । जब तक नयें जारी किये गये उद्योग-धन्धे अच्छी तरह चल न निकलें तब तक उनकी उन्नति के लिए विदेशी माल का प्रतिवन्ध करना बहुत जरूरी है । परन्तु व्यापार-वन्धन चिरकाल तक नहीं रचना चाहिए। जहां अपने देश के कला-कौशल कै उत्तेजन मिल चुके, जहां अपने देश का उद्योग जड़ पकड़ ले, जहां व्यापार-व्यवसाय में अपना देश दूसरे देशों से मुक्तावला करने योग्य हो जय, तह चैयापार-उन्धन के हीला कर देना चाहिए । हमेशा के लिए उसे पकसा दृढ़ बनाये रखना अलपते हानिकारी और सम्पतिशास्त्र के नियमों के प्रतिकूल है। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और आस्ट्रेलिया अादि श ने अचिरम्यायी व्यापार-बन्धने से बड़े बड़े फ़ायदे उठाये हैं । ये देश अब तक किसी किसी चदेशी माल को अमदनो का प्रतिबन्ध बराबर करते जाते हैं !. • वैसा करना सम्पत्ति-शास्त्र की दृष्टि से भी बुरा नहीं। इंगलैंड के प्रसिद्ध ग्रन्थकार “मिलने सम्पत्ति-शास्त्र सम्बन्धी एक ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ बहुत प्रामाणिक माना जाता है । इसमें उसने अचिरस्थायी व्यापार प्रतिबन्ध के अनुकुल राय दी है। उसके कथन का सारांश यह है :-कुछ