पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४५

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३२६ सम्पत्तिशास्त्र । सम्पत्ति-शास्त्र के नियमों के प्रतिकुल नहीं। हां उसे हमेशा न जारी रखना चाहिए, और ऐसेहो उद्योग-धन्धे की उन्नति के लिए जारी करना चाहिए जिसके चल निकलने की पूरी उमेद हो । जहां नया काम चल निकले और विदेशी माल से मुक़ाबला करने को शक्ति उसमें अजाय तह प्रतिबन्ध दूर कर देना चाहिए । मिल साहब की यह राय सर्वथा यधार्थ है। छाटा लड़का जवान आदमी के बराबर काम नहीं कर सकता। यदि उससे जवान आदम के बराबर काम लेना हो तो उसका पालन-पोपण करकै वड़ा करना चाहिए और लड़कपन से ही उसे काम करने की यादत डालनी चाहिए। ऐसा करने से जैसे जैसे वह बड़ा होगा वैसेही नैसे जवान आदमी को बराबरी कर सकेगा । पर यदि लड़कपनही में जवान अदमी का इतना काम उससे लिया जायगा है। उसका नाश हुए बिना न रहेगा। ठीक यही हाल नये और पुराने उद्योग-धन्धे का भी है । जैसा कि इसके पहले परिच्छेद में लिखा गया है ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय में हिन्दुस्तान से अनेक प्रकार का माल और कपड़ा इंगलैंड जाता था। यह ग्यकर वहां वालों में अनेक बार यहां का माल व्यवहार में न होने का निश्चय किया । पर जब इससे कायसिद्धि में हुई सर्च गवर्नमेंट ने यहां का माल यवहार करने वालों के लिए दg तक देने का क़ानून बनाया । हिन्दुस्तान से जाने वाले माल पर कड़ी महसूल लगाया गया । इस बीच में कपड़े अादि के कारस्याने इंगलैंड में रचुलने लग गये थे। हिन्दुस्तान से माल की आमदनी वन्द होने से इन कारखानों को शीघ्र ही उन्नति हो गई। वहां चहुत असे कपड़ा बनने लगा । जव देश ही में सब तरह का माल तैयार होने लगा तय हिन्दुस्तान के कपड़े को घहाँ कौन पृछता है? उलटा इंगलैंड का कपड़ा हिन्दुस्तान आने लगा । अतएवं हिन्दुस्तान से जाने वाले माल के प्रतिबन्ध की फिर ज़रूरत न रही । मिल के मत का जो सारांश हमने ऊपर दिया है उसको यथार्थता का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस समय इंगळुइ ने व्यापार-वन्धन किस अंश में चन्द कर दिया है, सो उचित हो किया है। उससे जो कार्यप्रसिद्धि होने को थी वह हे चुकी । यदि अब तक भो व्यापार को प्रतिवन्ध होता है। उसले इंगलैंड को हानि उठानी पड़ती। योकि इस तरह का बन्धन सार्वकालीन न होना चाहिए । इसी से स्वदेश के उद्योग-धन्धे को उन्नत करने के लिए