पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४६

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इन्धनरहित और वन्धनविहित व्यापार ! ૨૨૭ पहले तो इंगलैंड ने व्यापार-प्रतिबन्ध की नीति का अनुसरण किया, और जब उसका अभीष्ट सिद्ध हो गया तब वह चत्वानरहित व्यापार का पंक्षपाती वैा गया । व्यापार-बन्धन से हानि होने की संभावना रहती है, पर विशेष चिशेप अवस्थाओं में देश को दशा देखकर व्यापार प्रतिबन्ध करने से देश को बहुत लाभ होता है । इसमें कोई सन्देह नहीं ।

  • मिल ही नहीं, प्रसिद्ध इतिहास-लेखक "थको ने भी इस बात को बड़ी ही जोरदार भाप में दिखलाया है कि इगलंह की घन्धनरहित व्यापार-नीति अभी कल की है । जब उद्योगशीलता और कल-कारखानेदारी में वह

और देशों से बराबरी करने लायक़ है। गया यही नहीं किन्तु किसौ.. किसी अंश में वह उनसे चढ़ भी गया, तब उसने चन्धनरति व्यापार का पक्ष लिया, पहले नहीं। और अब भी क्या घह व्यापार-बन्धन से बाज़ थोड़े ही आता है। हिन्दुस्तान से जाने वाले कितने ही प्रकार के माल पर जा कर लगाया गया है वह और किसी कारण से नहीं, इंगलैंड के व्यापार को अधिक सुभीता पहुँचाने हो के इरादे से लगाया गया है । हिन्दुस्तान के कल-कारख़ान के लिए नये नये नियम बनाने और उनमें काम करने वालों के घंटे नियत करने की जैा खटपट हुआ करती है, और इस समय, नवम्बर ०७ में, मीजी इस विपर्य की जाँच पड़ताल हो रही है, उसका आन्तरिक आशय एक चम्चा तक समझ सकता है। इस दशा में यदि हम लोग स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम करें, और स्वदेशी उद्योग-धन्धे के उन्नत करने की तरकीबें साचे ती सर्वथा उचित है । गवर्नमेंट भी इसका विरोध नहीं करती । वह ता उलटा इम लोगों को उत्साह देती है—अनेक तरह की मदद देती है कि हम अपने देश में उद्योगशौलत की वृद्धि करें, नये नये कारख़ाने खेालें । नये नये व्यापार-व्यवसाय जारी करें। हां बात यह है कि हमारे इस स्वदेशवस्तु-प्रेम में राजनीति का कोई रहस्य न होना चाहिए। उससे राजनैतिक चु न आनी चाहिए । गवर्नमेंट के हानि पहुंचाने, जसे चिल्लाने, था उससे किसी बात का बदला लेने के इरादे से यह काम न करना चाहिए । सम्पतिशास्त्र के ज्ञाता इस देश के जिन विद्वानों ने व्यापार-चिपयक समस्या का विचार किया है, सब की यही राय है कि यहां के उद्योग-धन्ध की उन्नति के लिए अधिरस्थायी व्यापारि-प्रतिबन्ध की बड़ी ज़रूरत है?