पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४७

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सम्पत्ति-शा । दक्षिण में एक जगह पालघाट है। यहां के घिकोरिया कालेज के प्रधभाध्यक्ष जी० वा साहब एम० ए० ने "इंडस्ट्रियल इंडिया' नाम की एक किताब लिख कर बड़ा नाम पाया है। उनकी किताव के एक अध्याय का भतली इस पुस्तक के एक परिच्छेद में हमने दिया भी है। अपने १९०७ में कनानूर' को प्रदर्शिनी में एक लेखे पढ़ा था । उसमें अपने बहुत ज़ोर देकर कहा है कि जब तक गवर्नमेंट विदेशी माल की आमदनी से इस देश के उद्यमों को कुछ काल तक रक्षा न करे तब तक उनके उन्नत होने को बहुत कम अशा है। पहले जो माल दूसरे देशों से यहां आदि था उसपर चर्च वहुत पड़ता था । जहाज़ चलाने वाली कंपनियां बद्भुत किराया लेती थीं। इससे विदेशी माल यही महंगा पड़ता था। उस समय व्यापार-प्रतिवन्ध को उतनों अधिक ज़रूरत न थी। पर रच किराया बहुत कम हो गया है। इसमें विदेशी चो यहां बहुत सस्ती पड़ती हैं । इस दशा में यदि इस देश के नयें उद्यम और नये कारोबार को रक्षा न की जायगी तो यहां का माल विदेशी माल के साथ स्पर्धा करने में कभी न ठर सकेगा 1 नये कारनानी और नये उद्यमी की कामयाबी के लिए कमसे कम १० वर्ष तक विदेशी माल का प्रतिबन्थ जरूर करना चाहिए। इसके बाद उस प्रतिवन्ध की कम क्रम में शिथिल करके कुछ दिनों में बिलकुल ही इछा देना चाहिए। यदि १० वर्ष में कोई नया रोज़गार या उद्योग न चढ निकले तो समझ लेना चाहिए कि वह कभी न चल सकेगा। | करोड़पती कारनेगा साहब का नाम पाठकों ने सुना होगा । अमेरिका में लोहे का रोज़गार करके इन्होंने अनन्त धन कमाया है और अब शिक्षाप्रचार आदि के लिए करोड़ों रुपया दान देकर उस रुपये का सदुपयोग कर रहे हैं । आप की राय है कि अमेरिका के संयुक्त राज्यों ने व्यापार व्यवसाय में जर इतनी उन्नति की है उसका मुग्न्य कारण व्यापार-प्रतिबन्ध है। जर्मनी की सम्पत्ति-वृद्धि का कारण भी आप यही बतलाते हैं। यदि इन देशों ने विदेशी माल की आमदनों का प्रतिबन्ध करके अपने यहां के उद्योग-धन्धे को छुद्धि न की होती तो ये कभी इतने सम्पत्तिशाली न होते, कभी यहां का रोज़गार और व्यापार इतना न चमकता, कभी इनकी इतनी उन्नति में होती । अमेरिका में इस बात के कितनेही उदाहरण विद्यमान हैं कि जब जव चहां विदेशी माल के प्रतिवन्ध में शिथिलता हुई है तब तब