पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४८

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इन्धनरहित र इन्धनविदित व्यापार । ३२९ उस देश को हानि उठानी पड़ी है-तच तव उस देश के झापा-यवसाय ॐ धन पचा हैं । यदि प्रतिबन्ध की नीति अमेरिका के लिए लाभदायक साबित हुई है तो इंगलैंड के लिए भी वह लाभदायक होनी चाहिए । कुछ लोगों की राय है कि चन्धनरहित व्यापार का पक्षपाती बनने से हैं लंड को कुछ समय से बड़ी हानि पहुंच रही है। व्यापार-व्यवसाय में जर्मनी र अमेरिका उससे चढ़े जा रहे हैं। अतएव जब तक वह अपनी नोति को न बदलेगा तब तक वह इन देशों की चरवरी न कर सर्केगा । अन्य देशचाले जो माल अब तक इँगलं; से मंगाते थे अध अमेरिका और जर्मनी से मँगाने लगे हैं । इस कारण इंगलैंड के कुछ विचार शील लोगों का ध्यान इस तरफ़ गया है। चेम्बरलैन साहब इन लोगरों के मुत्रिया हैं । अझ कई घर्षों में बैंगलंड को व्यापार-नीति में परिवर्तन फाने के लिए जो ज्ञान तोड़ कर उद्योग कर रहे हैं । उनका पक्ष अच प्रचल होता दिखाई देता है । सम्भच है, उन्हें अपने उद्योग में कामयाबी हो और गलैंड को अपनी नीति बदलनी पड़े। इससे हिन्दुस्तान को भी कुछ लाभ होगा या नहीं, सो तो अभी दूर की बात है। पर संभावना यही है कि न होगा और होगा भी तो बहुत कम । म्याकि हिन्दुस्तान की राजसत्ता पालियामेंट ( हाउस व् कमन्स ) के द्वार्थ में हैं। और पारलियामेंट में गले के व्यापारियों और कारखानेदारों के प्रतिनिधियों का ज़ोर हैं। में कोई क़ानून क्यों ऐसा जारी होने देंगे जिससे विलायती भाल का पत्रप हिन्दुस्तान में कम हो जाय १ हिन्दुस्तान के लिए यह दुर्भाग्य की बात है । वन्धनरहित यापरि बुरा नहीं । सम्पतिशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार उसमें कोई दोष नहीं। पर यदि वन्धनरहित व्यापार के पक्षपाती यद्द कड़े कि हमारे मत को आप आँख धन्द करके मान लीजिए। अपनी स्थिति का कुछ विचार न कीजिय, तो सरासर उनकी जबरदस्ती नहीं तो नादानी ज़रूर है। अर्थशास्त्र का व्यापक सिद्धान्त यह है कि व्यवहारोपयोगी चीज़ों की उत्पत्ति और व्यापार में कोई वधानं डालनी चाहिए। उसमें कोई प्रतिबन्ध न करने से उत्पत्ति अधिक होती है और व्यापार बढ़ता है। पर इससे यह नहीं सिद्ध होता कि जिस देश को अपनी स्थिति सुधारना हो उसे यह सिद्धान्त एकदमदी मूवीकार कर लेना चाहिए । यदि सम्पतिशास्त्र इस तरह की ज़बरदस्ती करेगा तो उसे शास्त्रही न कहना चाहिए ।