पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३५३

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३३४ सम्पत्ति-शास्त्र । सुभीता होता हैं । जो चीज़ कानपुर में २ रुपयै मन विकती है रेल द्वारा कलकत्ते पहुँच कर वह ३ रुपये मन की हो जाती है। अर्थात् गमनागमन का सुभोता होने से व्यवहार की चोज़ जिस जगह जाती हैं उस जगह की विशेषता के अनुसार अधिक मूल्यवान् हो जाती हैं। दुर्भिक्ष और महँगी फै समय में जो चीजें अन्य प्रान्तों से नहीं सकतीं, रेलों और नहरों के द्वारा वे बिना विशेष प्रयास के चली आती हैं। इस से दुर्भिक्षग्रस्त प्रान्त का अभाव बहुत कुछ दूर हो जाता है । इसके साथ ही व्यापार करने थालों के भी लाभ होता है । राजाही के सुप्रवन्ध को वदलित अनेक प्रकार की ध्यावहारिक चीजें पैदा करने वालों और उन्हें एक जगह से दूसरी जगह भेजने वालों की रक्षा चोरों और लुटेरों से होती है । इसी राज्य-प्रबन्ध ही की कृपा से वे अपने परिश्रमज़त कर्मफल का भाग करने में समर्थ हैंाते हैं । अतएव व्यापारी और व्यवसायी अदमियों को भी देश की राज्य-व्यवस्था के लिए अपनी सम्पत्ति का कुछ अंश ज़रूरही देना चाहिए । राज्य-बन्ध में जौ खर्च पड़ता है वह कर के टिकस के रूप में प्रजा है 'लिया जाता है । परन्तु सब लोगों को गवर्नमेंट के प्रवन्ध से एक सा फ़ायदा नहीं पहुँचता । कल्पना कीजिए कि प्रजा के फ़ायदे के लिए गवर्नमेंट ने एक सड़क बनवा दी । पर, संभव है। कुछ लोग उस सड़क में कभी न जाय । अर्थात उनके लिए उस सड़क को बनना यर्थ है । इस दशा में वे कह सकते हैं कि इस सड़क के लिए हमसे जो रूपयो कर के रूप में लिया गया वह अन्याय हुआ । पर यदि सैकड़े पीछे है। चार अादमी उस सड़क को काम में न लाये तो उनका इज़ न सुना जायगा। यदि उससे ९५ आदमियेां को लाभ :, पहुंचे और सिर्फ ५ को नहीं, तो ९५ के लाभ के लिए ५ को हानि उठा कर भी समाज का भला करना चाहिए । जो कुछ हो, देश-प्रवन्ध में जो खर्च पड़ता है उसे राजा के बहुत सोच समझ कर मजा से वसूल करना चाहिए । ऐसा न हो कि किसी से अन्यायपूर्वक कर लिया जाय । यदि सेव अचस्था र सत्र श्रेणियों के लोगों से एकसा कर लिया जायगा तो प्रजा में ज़रूर असन्तोप फैलेगा । योकि सत्र की सम्पतिक अवस्था पकसी नहीं होती । सौ रुपये महीने की ग्रामदनी वाला आदमी जितना कर दे सकेगा, पचास रुपये महीने की आमदनी चाला उतना न दे सकेगा । फर लगाने में भूलें होने से किसी से कम किसी से अधिक कर लेने से देश में प्रसन्तीप