पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३५८

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करों की आवश्यकता और तत्सम्बन्धी नियम आदि । ३३९ वसूल करेगो तो उसको केाई हानि न होगी, पर प्रज्ञा की बहुत आराम मिलेर । इस से सरकार बहुत करके किसानों से जिन्स तैयार हैराने पर लगन लेती है, या उसे कई किस्तों में, जैसे जैसे जिन्स तैयार होती जाती है, लेती जाती है। इस से किसान आदमियों को लगान छैन। खेलता नहीं, क्योंकि वे अनाज येच कर लगान दे देते हैं। जैसा ऊपर एक जगह कहा जा चुका है, व्यवहार की चीज़ों पर लगाया गया कर, अन्त में, उन्हें मोल लेने वाले को देना पड़ता है । जिस समय वह इन चोङ्ग को मोल लेता है उस समय वह अपने हिस्से का कर देता है। पर सरकार को इस तरह का कर किस समय और किस तरकीब से वसूल करना चाहिए ? यदि सरकार नमक बैंचने वाले हर एक दुकानदार की दुकान पर अपना सिपाही विझा दे मैदर जो आदमी नमक लेने आवे उससे । यह उस समय उसके हिस्से का महसुल घसूल करे, तो बड़ा झंझट हो । ऐसा करने से सरकार की भी व्यर्थं कष्ट उठाना पड़े और प्रइिकों को भी । इससे, यद्यपि व्यावहारिक चीजें मोल लेनेवालों ही की उन पर लगाया गया कर देना पड़ता है, तथापि सरकार देने वालों से पहले कर ले लेती है। चेखने वाले उल कर को, विकी की चीज़ों की कीमत में शामिल करके, ग्राहकों से ले लेने हैं। इससे दोनों पक्षों को सुभीता होता है। (४) एडम स्मिथ ने करों के सम्बन्ध में चौथा नियम बनाया हैं इसका अाशय यह है कि कर इस तरह वसुल करने चाहिए जिसमें खर्च कम पड़े । खर्च कम पड़ने से करों का अधिकांश सरकारी खज़ाने में जायगा और जिस अभिमाय से कर लगाये जातें है उसको पूर्ति में अधिक सफलती होगी । इस नियम के अनुसार केाई कर पैसा न लगाना चाहिए जिसके वसूल फ़रने के लिए बहुत से अधिकारियों और कर्मचारियेां को ज़रूरत पड़े, और जो कृपया वसूल किया जाय उसमें से बहुत कुछ व्यर्थ ख़र्च हो जाय; या उससे किसी व्यापार-धन्धे में बाधा आवे और व्यवहार की चीजें मैंहगी है। जय । इस के सिवा गवर्नमेंट को इस बात का भी बयाल रखना चाहिए कि कर देने वाली का समय और रुपयः व्यर्थ में खर्च है । इस पिछली बात के ग्रयाल से गवर्नमेंट ने जी दस्तावेज़ झी "स्टीप कागज पर लिखने और उन्हें रजिस्ट्री कराने का नियम किया है उससे प्रज्ञा को तकलीफ़ देती