पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६१

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३४२ , सम्पत्ति-शास्त्र । प्रत्यक्ष कर हर आदमीको आमदनी या खर्च के अनुसार लगाये जाते हैं। जिसकी जितनी अमदनी या जिसका जितना खर्च होता है उस से उतना ही कर लिया जाता है। इन्कमटैक्स, गाड़ियै पर टैक्स ( अर्थात् ह्रोल छैल) पानी पर टैक्स, घरों पर टैक्स, लाइसंस टैक्स प्रत्यक्ष करोंदी की परिभापा के भीतर हैं। ये सब प्रत्यक्ष कर हैं, क्योंकि जिस पर ये कर लगाये जाते हैं उसी के देने पड़ते हैं। यह नहीं होता कि करदाता इन झरों केा किसी और से वसूल करके अपनी क्षति के पूर्ण कर सके। आमदनी में तीन बातें शमिल हो सकती हैं । जमीन को लगान, मुनाफ़ा और मज़दूरी । अर्थात् इन्हों तीन मदों से अमदनी हो सकती है । पानी अादि पर जा कर लगाया जाता है वह ख़र्च के हिसाब से होगाथा जाता । जे जितना पानी खर्च करता है, जै जितनी गाड़ियां च्यवहार में लाता या व्रता है, जिसके जितने वर होते हैं उसे उतना ही कर देना पड़ता है। लगान पर जा कर लगाया जाता है घह ज़मीन के मालिक की ही देना पड़ता है। वह उससे किसी तरह नहीं बच सकता। क्योंकि उस कर के वह किसी और से नहीं चसूल कर सकता। यदि वह चाहे कि जितनी रक़म कर की मैंने सरकार को दी है उतनी अनाज महँगा बेच कर मेल लेने वाले से वसूल कर लें, तो ऐसा न कर सकेगा। क्योंकि, यदि वह अपना अनाज महँगा बेचेगा तो फाई क्यों उससे माल लेगा ? अनाज जब विकै तच वाज़ार साव से बिकेगा । और बाज़ार भाव का घटाना या चढ़ाना किसी के हाथ में नहीं। लगान पर कर लेने से अनाज के भाव में फेरफार नहीं हो सकता । अनाज को निख्न निकृष्ट भूमि के उत्पादनळ्यय के अनुसार निश्चित होता है। और निकृष्ट भूमि पर कुछ भी लगान नहीं लग सकता। अतएव लगाने और अनाज के निख़ में परस्पर कुछ भी सम्बन्ध नहीं । लगान पर जा कर लगायी जायगा वह हमेशा अमीन के मालिक हो फा देना पड़ेगा । हिन्दुस्तम्न में प्रायः सारी जमीन की मालिक सरकार है। और कर भी सरकार ही लगाती है । इससे वह अपने ही ऊपर कर लगाने से रही । हो, जहाँ जहाँ ज़मींदारी, अल्लुकेदारी या इनामदार प्रवन्ध है। चहाँ वहाँ यदि लगान पर कर लगाया जाय तो ज़मीन के मालिके ही की देना पड़े। यथार्थ में नै लगान सरकार या ज़मींदार की देना पड़ता है