पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रत्यक्ष फ। ३४३ चह भी एक प्रकार का कर ही है । लगान के रूप में कर लेकर ही सरकार या ज़मींदार लेग अपनी ज़मीन किसानों की जोतने के लिए दैते हैं । हिन्दुस्तान की प्रज्ञा से यहां का गवर्नमेंट हर साल केाई २७ करोड़ रुपया कर लगाने ३ नाम से वसूल करत है। यदि यह करने लगता तो इतना रुपया प्रज्ञा से और कोई कर लगा कर चसूल किया जाता है क्योंकि बिना रूपयें कै चिनेमैट का राज्य-प्रबन्ध न चल सकता । मुनाफ़े पर लगाये गये कर का बोझ भी कर देने वाले ही पर पड़ता है। परन्तु कर देने के कारण मुनाफे को मात्रा कम होती जाती है । मुनाफ़ा कम होने में सैन्त्रय कम होता है। इससे पूँजो की वृद्धि नहीं होती । पं जो कम हो जाने से बड़े बड़े कारोवार नहीं हो सकते और मजदूरों के मज़दूरी भी कम मिलती है। | मज़दूरी दो तरह की होती हैं। एक साधारण अशिक्षित मजदूरों की मज़दूरी: दूसरी शिक्षित लोगों को और कलाकुशल कारीगरों की मज़दूरी । दूसरे प्रकार के लोगों की विद्या और कारीगरी आदि सीखने में जा खर्च और श्रम पड़ता है उसकी अपेक्षा उन्हें बहुत अधिक आमदनी होती है । इससे चे अपन; आमदनी से सरकारी कर सहज में दे सकते हैं। परन्तु दूसरे प्रकार के मजदूरों की कमाई कम होने के कारण उन्हें अपनी आमदनी पर कर देते खलता है। क्योंकि उन्हें जितनी आमदनी होती है वह खाने पीने और पहनने की चीजें खरीदने के लिए ही काफ़ी नहीं होती । मीर नामदनी पर जा कर लिया जाता है उसको घोझ दूसरों पर डालना असंभव है। वह सब लागै की अपनी निज की ही आमदनी से निकाल कर देना पड़ता है। अतएव कम आमदनी घाले से कर लेना अन्याय हैं । इन्हीं वासों के ख़याल से इन्कमटैक्स, अर्थात् आमदनी पर कर, उन लोगों से नहीं लिया जाता जिन की आमदनी एक निचित रक़म से कम होती हैं । अर्थात् यह देख लिया जाता है कि अमुक अमदनी होने से लोग विना विशेष क→ उहाथै सरकारी कर सकेंगे । जिस की आमदनी बससे कम होती है उससे यह कर नहीं लिया जाता। इस देश की गवर्नमेंट ने पहले इस अमदनी की सीमा ५०० रुपये रक्खी शो । उसका ख़याल था कि जिसकी सालाना आमदनी ५०० रुपये और उससे अधिक हैं उसे ईस कर के देने में कोई तकलीफ़ न होगी । ५७६ रुपये साल साधारण तौर पर जानें