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રૂણ , सम्पत्ति-शास्त्र । पौने अादि के खन्ने के लिये उसने बस समझा था । पर तजरिवे से उसे जब मालूम हो गया कि ५०० रुपये की सीमा रखने से कम अमदनी वालों की कर देते खलता है, तब उसने इस रक़म के बढ़ कर हज़ार रुपये कर दिया। अब किसकी आमदनों हज़ार रुपये से कम है उसे थह कर नहीं देना पड़ता। हज़ार और उससे अधिक आमदनी वालों ही से यह कर लिया जाता है । यह कर लगाने के लिये अमिदनी' का निश्चय करने में कभी कभी बड़ी दिक्त पड़ती हैं। क्योंकि जो लोग व्यापार-व्यवसाय करते हैं उनकी आमदनी निचित नहीं होती है किसी साल उन्हें कम अमदनी होती है किसी साल अधिक। इससे कर की रक़म में फेरफार की ज़रूरत हुआ। केरती है। और एक दफ़े जा कर' लग जाता है उसे कम कराने में बड़े झंझट होते हैं, जिन लोगों की आमदनी अधिक है उनकी अपेक्षा कम आमदनी चालों पर इस कर का बोझ अधिक पड़ता है। कल्पना कीजिए कि इन्कमटैक्स का निर्ज़ एक रुपया सैकड़ा है। अतएन हजार रुपये की आमदनी वाले को साल में १० रुपये कर देना पड़ेगा। इस हिसाब से जिसकी आमदनी दस इज़ार रुपये हैं उसे साल मैं १०० रुपये देना होगा । जिसका कुटुम्ब बड़ा है उसे साल में हज़ार रुपये घरही कै साधारण खर्च के लिये चाहिए। अतएव थदि उस से १० रुपये लिये जायेंगे तो ज़रूर उसे खलेगा और किसो ज़रूरी चीज़ के व्यवहार से घहवन्चित रहेगा । परन्तु जिस के घर साल में दस हज़ार रुपये जाते हैं उसे १०० रुपये सरकार को देते मालूम भी न पड़ेगा । बहुत होगा तो एक अध धिलास-द्रव्य का खर्च कम कर देने ही से उसका काम निकल जायगा । इस दशा में यदि पैसा नियम किया जाय कि एक अमुक रकम पर बिलकुल ही कर न लगे तो अच्छा होता फिर इसे शिकायत के लिए जगह न रहै । जैसा ऊपर लिखा गया है, हिन्दुस्तान में इस कर के लिए हज़ार रुपये आमदनी की सीमा रखी गई है । पर उस पूरी आमदनी पर कर लगा लिया जाता है । यह नहीं कि जितनी आमदनी साधारण खर्च के लिये काफ़ी समझी जाग्र उतनी छोड़ कर बाकी पर कर लगाया जाय । जिसकी आमदनी हज़ार रुपये कृती गई उसे एक रुपये से हज़ार रुपये तक फ़ी रुपये एक निश्चित निस्त्र के हिसाब से कर देना पड़ता है। आमदनी पर जे कर लिया जाता है वह प्रत्यक्ष कर है । पर यदि यह कर संञ्चत पूँजी से दिया जाता है तो परोक्ष होजाता है। क्योंकि पूँजी से