पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६४

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परोक्ष के । ३४५ हर मसुरों का पालन होता है, उसी से उनकों मजदूरी मिलती हैं । इस से पैसे कर का भान मज़दूरों पर पड़ता है। इसी से वह पक्ष होजाता है, कि जिसका भार इस पर पई, कर देने वालों पर नहीं, उसोको परोक्ष कर कहते हैं। कल्पना कीजिए कि किसी कारखानेदार को अपनी आमदनी पर हर साल हज़ार रुपये कर देना पड़ता है। अव यदि यह कर उसे न देना पड़ता तो इतना रुपया वह अपने फाराने में लगा देता । अर्थात वह उसकी पूंजी में शामिल होजना । ऐसा होने से अधिक मज़दूरों का पालनपोषण होता । यह रुपया कारखाने में न लगाये जाने से मानों उतने मजदूरों की मज़दूरी मारी गई । अर्थात् कर का भार जाकर उनपर पड़ा और वह पक्ष हौगया । यदि कारग्बानेदार इस कर को अपनी जी' से न देकर अपने पैश-आराम के खर्च नै देगा तो वह परोक्ष न होकर पूर्ववत् प्रत्यक्ष ही बना रहेगा । प्रत्यक्ष करों में से जो कर आमदनी पर लगता है वही सब से अधिक च्यापक है। अतएव उसी का विचार यहां पर किया गया है। अन्यान्य प्रत्यक्ष करों के चिपय में विचार करने के लिए इस पुस्तक में जगह नहीं । । तीसरी परिच्छेद। परोक्ष कर । जब गवर्नमेंट यह चाहती है कि जिससे कर लिया जाय उसीको घह अपने घर से न देना पड़े तसे इसे परोक्ष फर कहते हैं। ऐसे करों का भार उस आदमी पर नहीं पड़ता जिससे वह वसूल किया जाता है। केर धेने से उसकी जो हानि होती हैं उसे वह औरों के सिर ढाल देता है—उसे वह से वसूल कर लेता है । अर्थात् जिस अादमी पर इस कर का प्रत्यक्ष बोझ पड़ता है, असल में उसे यह कर नहीं देना पड़ता । परोक्ष रीति से चहू औरोह को देना पड़ता है। एक उदाहरण लीजिए । विदेश से जो मलि आता है उस पर सरकार कर लगा कर उस कार को माल पैदा करने या भेजने वालों से चल कर लेती हैं। पर यथार्थ में यह कर उन लोगों को अपने घर से नहीं देना पड़ता । वे लोग कर की रक्कम माल को क़ीमत में