पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६६

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परोक्ष । किसी व्यापार-व्यवसाय के करने का सच लोगों को एकसा अधिकार होने से थोड़ो जी के आदमी भी उसे कर सकते हैं । परन्तु अब इस तरह के नियम बनाये जाते हैं कि अमुक चीज़ का व्यापार अमुफही रीति से होना चाहिए, अमुक चीज़ | अमुक खान ही पर तैयार करनी चाहिए, अमुक चीज़ के कारखानों की जाँच अमुक अमुक अधिकारियों को करने ही देवा चापि तव ऐसी चीजों का व्यापार-व्यवसाय करनेवाळू की संभ्यर बहुत थोड़ी रह जाती है, क्योंकि सब लोग सरकारी नियमों का पालन नहीं कर सकते । जब किसी चीज के निर्मीता या व्यापारी कम हो जाते हैं तब पार स्परिक स्पर्धा भी कम हो जाता हैं। इससे थोड़ेहो आदमियों के हाथ में इस तरह के व्यापार-व्यवसाय र जाते हैं, और चढ़ा ऊपर न रहने, या अद्भुतही कम हो जानें, से वे लोग ऐसी चीज़ों की कीमत चद्धा देते हैं। इसे ' करोंही की करामात का फल समझना चाहिए । करों के वसूल करने में सर्व तरह का खुमीता हो, ऐसा न हो कि कोई दम कर देने से बच जाय। इस क्लिप गवर्नमेंट को टेढ़े मेढ़े नियम बनाने पड़ते हैं। उन नियमों का पालन सबसे नहीं हो सकता • इससे व्यापारियों द्वैर व्यवसायिय का नंबर कम हो जाता है और वे लोग कर फी मात्रा से अधिक फ़ीमत धस्सूल करके बेहद लाभ उठाते हैं। इस प्रकार के व्यापार या व्यवसायको पकाधिकार-व्यापार यो व्यवसाय कहते हैं। नमक, अफ़ीम और शराब पर कर लगा कर गवर्नमैट ने इन चीज़ों के व्यापार-व्यवसाय का पुकाधिकार अपने हाथ में कर रखा है। इससे गवर्नमेंट को तो लाखों रुपये का लाभ होता है। पर इस एकाधिकार के कारण इन चीजों का व्यापार करने में प्रजा के यथैए सुमीता नहीं होता। इसके सिवा करों के कारण इन चीज़ों का क़ीमत जो बढ़ जाती है उसे भी चुपचाप देना पड़ता है। इनकी उत्पत्ति में जो खर्च पड़ता हैं चच्च, और करों की रकम, दोनों की अपेक्षा अधिक खर्च करने पर कहीं लोग इनका व्यापार करने पाते हैं । इस सब खर्च का चोझ अन्त में नमक, अफ़ोम और शराब मौळ लैक, व्यवहार करने वालों पर पड़ता है। इमारी गवर्नमेंट हिन्दुस्तान मैं राज्य मो करती है भार थोडासा व्यापार भी करती है। अफ़ीम और शराब के व्यापार का प्रतिबन्ध करके उसे अपने हाथ में रख्नना तो किसी प्रकार न्याय-सङ्कत भी माना जा सकता है; क्योंकि गवर्नमेंट का प्रतिबन्ध दूर हो जाने से इन मादक चीज़ों के व्यवहार के बढ़ जाने का डर है । परन्तु