पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७२

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विदेश व्यापार पर कर। विदेशी-व्यापार क परिभाषा में आयात और थात दोनों तरह के माल का समावेश होता है। जो माल विदेश से आता है वह भी विदेश व्यापार के अन्तर्गत है, और जो विदेश जाता है वह भी । अर्थात् विदेशी व्यापार पर कर लगाने से मतलब आयात और यात दोनों प्रकार के माल पर कर लगाने से है । जो माल चिदश से आकर अपने देश में निकली है उस पर लगाया गया कर अपने ही देश को प्रजा को देना चाहिए । इसी तरह की माल अपने देश से अन्य देश को जाता है उस पर लगाये गये कर की बोझ अन्य देश चालों पर पड़ना चाहिए । साधारण नियम यही है । अर्थात् अक्ष में माल लेकर जो उसे काम में लायेगा उसी के घर से कर फा रुपया जाना चाहिए । परन्तु विदेशी व्यापार की वस्तुओं पर लगाये गये कर, का असर हमेशा एकसो नहीं पड़ता । कभी कभी साधारण नियम के प्रतिकुल फल होता है । अर्थात् स्थूल दृष्टि से ऐसे करों का धीझ जिन पर पड़ना चाहे उन पर नहीं पड़ता। जो माल घिदेश जाता है उस पर कर लगाने से उस कर कई थोड़ा चहुत असर विदेशियों पर ज़रूर पड़ता है । इस कर से अपने देश की आमदनी थोड़ी बहुत ज़रूर बढ़ जाती हैं । परन्तु यह तभी हो सकता है जब अन्य देशों को अपने माल को बहुत छी अधिक ज़रूरत हो–अर्थात् जब उसके बिना और देश का कामहो न चल सकता हौ । जब अपने माल का विदेश में बेहद खप होता है, और कर लगाने से उसकी क़ीमत बढ़ जाने पर भी उसकी रफ्तनी के कम होने का डर नहीं होता, तभी उससे अपने देश को लाभ पहुँच सकता है। यदि यह बात न होगी तो अपने माल पर कर लगाने से लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना रहती है। हिन्दुस्तान में अफ़ौम चहुत होती है और अच्छी होती है। इतनी अच्छी मैर इतनी अधिक अफ़ीम और कहीं नहीं होती है इस देश की गवर्नमेंट ने अफ़ीम पर अपना एकाधिकार कर रखा है। करोड़ों रुपये की अफ़ीम हर साल यहां की गवर्नमेंट चीन को भेजती है। उसका वहां देहद खूप है। अफ़ीम बिना चीनचालों का काम नहीं चल सकता । वे पहले दरजे के अफ्रीमची हैं। और हिन्दुस्तान को ऐसी अफ़ीम उन्हें और देशों से मिल नहीं सकती । इससे गवर्नमेंट ने अफ़ीम पर कस कर कर लगाया है। उससे कई करोड़ रुपये की आमदनी गवर्नमेंट फै। होती हैं पैर चीनवाले चुपचाप