पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३५४ सम्पत्तिशास्त्र । कर फी रूपया देते हैं। इस कर का सारा बोझ चीनवालों ही पर पड़ता है। यदि वे इससे बचना चाहें तो नहीं बच सकते हैं क्योंकि उनके यहां अफ़ीम का जितना स्वप है उसे, और देश से अफीम लेकर, वे नहीं पूरा कर सकते। हां यदि वे अफ़ीम खाना बन्द कर दें तो ज़रूर इसे कर से उनका छुटकारा हो जाय । चीन की गवर्नमेंट वहांचालों की इस आदत के छुड़ाने का यत्न कर रही है । इससे धीरे धीरे अफ़ीम. की रफ्तनी कम हो जायेगी । पर जब तक चीनचालें की अफ़ीम खाने की आदत नहीं छूटती तब तक हिन्दुस्तान से अफ़ीम बराबर जाती रहेगी । विदेश जानेवाले जिस माल पर कर लगाने से कर का बोझ अन्य देशों हों पर पड़ता है, अफ़ीम पर लगाया गया कर उसका वहुत अच्छा उदाहरगड़ है। अच्छी, अब इसका उलटा उदाहरण लीजिए । हिन्दुस्तान से माटा कपड़ा भी थोड़ा बहुत चीन केा जाता है । कल्पना कीजिए कि यहां की गचनमंट ने उस पर कस कर कर लगाया 1 परिणाम यह होगा कि घीनघालों के यहां का कपड़ा महँगा पड़ेगा । चीन में सिर्फ यहीं से कपड़ा है। जाता नहीं, और अगर देशों से भी जाता है। वहां के कपड़े पर कर न होने, था कम होने, लै वह सस्ता बिकेगा। इससे हिन्दुस्तान के कपड़े को खप कम हो जायेगा। अर्थात् अधिक कर लगाने का फल यह होगा कि यहां का कपड़ा चीन की कम जाने लगेगा । अपना मोटा कपड़ा देकर चीन से जो रेशमी कपड़ा हमें मिलता था वह भी अब कम मिलने लगेगा । क्योंकि जब हमारे भाल की रपतनी कम हो जायगी तवं उसके बदले में मिलनेवाले माल की आमदनी भी कम हो जायगो । इस कारण देनों तरह से हमारी हानि होगी-यात और आयात दोनों तरह के माल का परिमाण कम हो जायगा । विदेशी व्यापार कम होने से व्यापारियों और व्यवसाथियों का मुनाफ़ा कम हो जाय। अर्थात देश की सम्पत्ति का बका पहुँचगा। पूजी कम हो जायगी । मज़दूरों की मजदूरी कम मिलने लगेगी । अतएघ विदेश जाने वाले जिस माळ की स्पर्धा करनेवाले और देश भी हो उस पर कर लगाना कभी युक्तिसङ्कत नहीं हो सकता । उस पर कर लगाने से लाभ के बदले हानि उठानी पड़ती है। अच्छा, अब, विदेश से आनेवाले आयात माल पर जो फर लगता है। उसका विचार कीजिए । ऐसे माल पर, जैसा ऊपर कहा जा चुका है, दो