पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७४

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विदेशी व्यापार पर कर . ३५५ उद्देशों से कर लाया जाता है। एक तो अपने देश के उद्योग-धन्धे और कला-कौशल का उन्नत करने के लिए, दूसरे अपने देश की आमदनी बढ़ाने के लिए । यदि पहले उद्देश से कर लगाया जाय तैा हमेशा के लिए उसे न लगाना चाहिए । स्वदेश के जिस व्यवसाय-जिस उद्योग-की वृद्धि के लिए कर लगाया गया हो उसके चल निकलते ही कर उठा लेना चाहिए या कम कर देना चाहिए, और सिर्फ उसी माल पर कर लगाना चाहिए जिसके अपने देश में तैयार होने या तरक्की पाने की उम्मेद हो । इस समय हिन्दु स्तान में कपड़े की बहुत सी मिलें चलने लगी हैं। पर उनका कपड़ा विल्लायती कपड़े का मुक़ाबला नहीं कर सकता। अतएव विलायती कपड़े पर जो कर लगता है चह यदि कुछ बढ़ा दिया जाय तो विलायती कपड़ा महँगो हो जाय। इससे उसकी आमदनी कम हो जाय और स्वदेशी कपड़ा लोग अधिक लेने लगें। जब यहां की मिलें विलायती मिळू का मुकाबला करने लायक हो जायँ तन विलायती कपड़े पर लगाया गया अधिक कर उठा दिया जाय । इससे हिन्दुस्तान के बहुत फ़ायदा हो सकता है। यदि सिर्फ देश की आमदनी बढ़ाने के लिए विदेश यात माल पर कर लगाया जाय ते कर इतना न होना चाहिए कि माल की आमदनी बिल कुल ही बन्दु है। जाय । वह इतनी ही होना चाहिए जिसमें उस माल की अहमदनी थोड़ी कम चाहे भले ही जाय, पर बन्द न हो। | अयात माल पर जा कर लगाया जाता है उस कर का चेझ अपने ही देश पर पड़ना चाहिए । पर कभी कभी फल इसका उलटा होता है । विदेश से जी माल आता है उसकी आमदनी कर लगाने पर भी यदि पूर्ववत् ही हाती गई ता माल भेजने वाले देश की कुछ भी हानि नहीं होती। बैर होती भी है और बहुत कम । खप घना रहने से वह मलि प्राप्ती ही जायगा और उसके बदले जो माल अपने देश से जाता है। वह भी पूर्ववत् जीया ही करेगा । कर लगाने का परिणाम यह होगा कि माल की असल क़ीमत और फर, दोनां रक़मै, अपने ही की देनी पड़ेगी । कर के कारण माल महँगा है। जायगा । अतएव कर लगाने से उलट अपनी ही हानि होगी। कर का सारा बेझि अपने ही देश पर पड़ेगा। यति माल पर कर लगने से कर का वेझ साधारण तैर पर यद्यपि अपने ही ऊपर पड़ता है तथापि कर के कारण माल का अर्थ थोड़ा बहुत