पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३८१

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३६२ सम्पत्ति-शास्त्र । में बाधा आनी भी न चाहिए । द ईश्वर के बनाये हुए नियम चलन हों तो ईश्वर को ईश्वरत्व कहाँ रहे हैं । ईश्वर के नियम यद्यपि निष्फल नहीं तथापि तजरिवे से यह मालूम होता है कि जिसने मनुष्य पैदा होने हैं उतने मरने नहीं । माल्थस नाम के एक बिल्लान् ने आबादी के सम्बन्ध में एक प्रायः सर्वमान्य ग्रन्थ लिम्रा है। उसमें उसने औसत लगा कर यह सिद्ध किया है कि हर स्त्री-पुरुप के चार बञ्च, दो लड़के दो लड़कियां, होती हैं और कई २५ वर्ष में प्रायः प्रत्येक देश की सीवादा दूनी हो जाती है । इस बात का उलेख्न पुस्तक के पूर्वार्द्ध में एक जगह किया जा चुका है। यदि इस जनसंख्या वृद्धि के काम करने की क्वाई युक्ति न की जायगी तो कोई समय पेसा अवैगा जब सब अदमियां के लिए रहने का काफ़ी जगह न मिलेगी। जितने ही अधिक प्रादमी होंगे उतने ही अधिक व्यवहारोपयैर्गी पदार्थ उनके लिए दरकार होंगे। भूमि की सीमा परिमित है। भूमि के आश्रय विना कई पदार्थ नहीं है। सकता । यदि यह मान भी ले कि कुछ पदार्थ भूमि के आश्रय के बिना भी हो सकते हैं, तो भी साने की मुख्य चीज़ अनाज तो बिना भूमि के किसी सरह नहीं हो सकता । भूमि दिनों दिन निःसत्य हाती जाती है और परती पड़ी हुई भूमि जुततो जाती है। वह हमेशा के लिए काफी नहीं । क्योंकि आदमियों की संख्या तो चढ़ती जाती है, पर भूमि जितनी की उतनी ही है। अतएच सम्पतिशास्त्र के शाता कहते हैं कि जनसंख्या कम करने के यदि उपाय न किये जाँयगे तो किसी समय मनुष्य-जाति का बहुत बड़ी आपदा का सामना करना पड़ेगा। हमें ईश्घर के भरोसे त्रैश रहना अच्छा नहीं । उद्योग भी हमें करना चाहिए । | १८१५ ईसवी के अन्तर फ्रांस देश में सम्पत्ति का ह्रास शुरू हुआ । कुछ समय बाद अमीर-गरीब सव को दुर्दशा होने लगो । अतएव प्रजावृद्धि को प्रतिबन्ध करना स्थिर हुमा । फ्रांस वाली ने निश्चय किया कि प्रत्येक स्त्री-पुरुप के दो तीन से अधिक सन्तान में होनी चाहिए। इसकी पावन्दी धिवेकजन्य कृत्रिम रूपये द्वारा होने लगी। फल भी अच्छा हुमा । अर्थकृच्छता बहुत कुछ कम हो गई । अन्न, इस समय, फ्रांस एक विशेष सम्पत्तिशाली देश. हा गया है। परन्तु अपत्य-प्रतिवन्ध की सीमा वहाँ अब इतनी बढ़ गई है कि कुछ समय से वहाँ के विचारशील जने की बड़ी चिन्ता