पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३८२

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देशान्तरमन । है।ने लगी है। उन्हें डर है। रहा है कि यदि यही हाल रहा तो किसी दिन फासौसी जाति एक बार हो न हो जयगी । श्योकि अत्र चहां फ़ौज में भरती होने के लिए काफी अचान नहीं मिलते । अतएव वहां अब वंशवृद्धि करने की योजनायें हो रही हैं। उधर, अमेरिका के बर्तमान सभापति रूजवेल्ट अपत्य-प्रतिबन्ध के बेहद खिलाफ़ हैं । वे कहने हैं कि कृत्रिम उपाये से धंश-बुद्धि रोकना श्वर के बनाये हुए नियमों का उल्लंघन करना है। अतएव स्वाभाविक तौर पर जितने बच्चे पैदा हो पैदा होने देना चाहिए । सभापति महाशय का कहना बजा भी नहीं । अमेरिका में अधिक संश-वृद्धि होने से केई विशेष हानि की संभावना नहीं । वहाँ की बस्ती उतनी घनी नहीं । अमेरिका भया देश है । हिन्दुस्तान की तरह पुराना नहीं। वहां इतनी ज़मीन बेकार पड़ी हुई है कि सैकड़ी वर्ष तक बंशवृद्धि होने से भी ज़मीन की कमी के कारण किसी प्रकार को कष्ट नहीं हो सकता । अतएव वहाँ अपत्य-प्रतिबन्ध करने की तादृश ज़रूरत भी नहीं । तथापि वहाँ के भी किसी किसी ब्रण्ड में आबादी इतनी बढ़ गई है कि सब का पेट भर भोजन नहीं मिलता | फल यह हुआ है कि हज़ारों अदमी योरप के जहाज़ों में भरे चले जा रहे हैं। हिन्दुस्तान में वंशवृद्धि रोकना कठिन काम है। यहां की विवाह-प्रथा बहुत पुरानी है। अविबाहित रह कर जनसंख्या कम करने की युक्ति यहां नहीं कारगर हो सकती । हां, और उपाय से चाहे भले ही वंशवृन्द कुछ कम हो जाय ! यहां तो सन्तति के लिए एक नहीं अनेक विवाह करना शास्त्रसम्मत बात है।"अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' प्रायः साधारण आदमियों के भी मुंह से सुनने में आता है। “पुत्रार्थं क्रियते भाया पुत्रपिण्डप्रयोजनम्" यह एक प्रसिद्ध शाल-वचन है । परन्तु जिस समय का यह वचन है उस समय यह विशाल भारतभूमि धन धान्य से परिपूर्ण थी और लोकसंख्या भी कम थी। जीवन-संग्राम इतना भीपण न था। भारतवासियों की आवश्यकतायें कम थीं 1 बहुत ही थोड़ी व्यवहारोपयोगी चीज़ों से काम निकल जाता था। परन्तु इस समय आवश्यकताओं के बढ़ जाने अँार लोकसंख्या अधिक हो ज्ञाने से इस देश के निवासियों की दशा दिनों दिन बिगड़ती जाती है। प्राचीन शरकार यदि इस देश की वर्तमान दुःख-दारिद-रूपिणो विभीषिका का