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देशान्तर-गमन।

आधे पेंट भी खाने को मिलता है तहाँ तक वे स्थानान्तर करना पसन्द नहीं करते है और करे भी तो उन्हें बड़े बड़े दुःख झेलने पड़ते हैं। इस समय हुज़ारों भारतवासी मारिशस, इमरारा, ट्रनिडाड, माल्टा, मट्टाल, ट्रान्सचाल, और कनाडा में हैं। उनका जाना आना वराबर जारी भी है। चद्दर थे लोग पदा भी खूब करते हैं। इससे सिद्ध है कि यद्यपि यहाँ घालै बाहरजाना कम पन्दि करते हैं तथापिं मुघल दरिद्र अथवा और कारणों से प्रेरित होकर वे अब विदेश जाने भी लगे हैं। परन्तु कुछ दिनों से गोरे चमड़े वालों ने इन्हें निकाल बाहर करने की ठानी है। ट्रान्सचाल में भारतवासियों पर जो अत्याचार हो रहा है वह किसे नहीं मालूम ? कनाडा में यहूर चालें की जो बेइजती हो रही है उसका वर्णन सुन कर किस भारतघासी का चित्त नहीं सन्तप्त होता ? अस्ट्रेलिया में भारतवासियों का प्रवेशद्वार जौ वन्द कर दिया है चह फ्या कम अन्याय की बात है ? भारत गोरे, अधगोरे, लाल, कम लाल, काले, सब तरह के चमड़े के आदमियों की बपौती है, पर भारत के आदमियों को कहीं अन्य देश में जाकर रहने का अधिकार नहीं! इस दशा में यदि देशान्तर-गमन से किसी विशेप लाभ की संभावना भी हो तो भी बेचारे भारत के लिए वह अग्रोप्य नहीं तो दुर्लभ ज़रूर है । सच पूछिए तो यहां बालों के लिए बाहर जाने की अभी चैसो ज़रूरत भी नहीं है। औसत लगाने से मालूम हुआ है कि सारे यूरए में जितने सचे पैदा होते हैं, हिन्दुस्तान में १०० पीछे ७५ घहाँ की अपेक्षा कम पैदा होते हैं । पर मरते अधिक हैं । युरष के मुकाबले में यहाँ उत्पत्ति कम होती है, ना अधिक होता है । इंगलैंड में एक वर्गमील में ५५० आदमी बसते हैं, हिन्दुस्तान में सिर्फ १७० ! यहां पर ४,५०,००० वर्गमील जमीन ऐसी पड़ी हुई है जिसमें खेती हो सकती है। हां यहाँ भी कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ की वस्ती बहुत घनी है । पर कुछ भाग-विशेष करके देश रियासतों में पैसा भी है जहां बहुत कम आबादी है । अतएव घने बसे हुए प्रान्त से लोग यदि कम घने, या बिलकुल ही मनुष्यहीन, भागों में जा घसे है। जैा लाभ देशान्तर-गमन से होता है वही भिन्न-प्रान्त-चास से भी हो । यदि जमीन का लगान फम है। जाय, सब कहीं इस्तिमरारी बन्दोवस्त हो जाय, और अनाज की रफ्तनी विदेश को कम कर दी जाय तो जिसने अदमियों का गुजारा इंस समय होता है उससे कहीं अधिक का