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जमीन ।


हल से जमीन जाती जाय तो बहुत गहरी जुते और पहले की अपेक्षा पैदावार भी अधिक हो। ये नये हल कलकत्ता. कानपुर आदि नगरों में आसानी से मिल सकते हैं। पौरप और अमेरिका में तो काटने, माँड़ने, भूसा उड़ाने गौर बीज बोने तक की कलें बन गई हैं। यदि उनका प्रचार किया जाय ते खर्च कम पड़े। और खर्च कम पड़ना मानो अधिक लाभ उठाना, अधवा जमीन की उत्पादकता को बढ़ाना, है । जमीन की उत्पादकता जितनी ही अधिक बढ़ जायगी उतनी ही अधिक सम्पत्ति की वृद्धि होगी । क्योंकि अमोन से बो चोजें पैदा होती हैं, सब सम्पति के अन्तर्गत है।

जो जमीन किसी मंडी या बड़े शहर के पास होती है उसकी उत्पादक शक्ति बढ़ जाती है, उसकी कीमत अधिक आती है। ऐसी ज़मीन की उपज बहुत थोड़े खर्च में मंडियों पार बाजारों में पहुँचाई जा सकती है । खर्च कम पड़ने से उसकी बिक्री से लाभ भी अधिक होता है। इसीसे शहर और चत्तो के पास को ज़मीन हमेशा महँगी विकती है । जिस जमीन में कुचे हैं, या जो नहर के पास है. उसकी भी अधिक कीमत आती है। व्यापार का सुभीता, पानी की प्राप्ति और बस्ती का पास होना-जमीन को अर्थोत्पा- दकता बढ़ाने के प्रधान कारण हैं | जो जमीन बस्ती से दूर है, जहां पानी नहीं है, जिसके आस पास कोई अच्न बाजार नहीं है उसकी कुछ भो कीमत नहीं पाती और पाती भी है तो बहुत कम । लाखों करोड़ों बोधे ज़मीन, बस्ती से दूर होने के कारण, परतो पड़ी रहती है । यह धात इस देश की बड़ी बड़ी रियासतों में बहुधा देखी जाती है । यदि उसके पास । मावादी हो जाय और सिंचाई के लिए कुबे और नहर बन जाँय तो पही जमीन उत्पादक हो जाय और देश की सम्मसि-बुद्धि का कारण हो।

'जमीन पर हमेशा के लिए अधिकार हो जाने से भी उसकी अर्थोत्पा- दकता बढ़ती है। जो किसान या ज़मीदार यह जानता है कि मेरी जमीन हमेशा मेरे ही अधिकार में रहेगी वह उसे उर्वरा बनाने में जी जान होम कर, कोशिश करता है । पर जो यह जानता है कि यह ज़मीन मुझसे छीनी जा सकती है, वह कमी उसे उत्पादक बनाने के लिए अधिक खर्च नहीं करता। यदि वह अच्छी अच्छी खाद डाल कर और कुषों खोद कर अपनी जमीन को उचरा वनाचे और पीछे से घह छिन जाय तो उसका खर्च ही ध्यर्थ जाय । यह भय बड़ा हानिकारी है । वह जमीन की उत्पादक शक्ति को नहीं बढ़ाने

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