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मेहनत


अनुत्पादक श्रम।

श्रम की सहायता के बिना सम्पत्ति नहीं उत्पन्न होतो पर कुछ श्रम ऐसे भी हैं जो उपयोगी तो है, परन्तु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रीति से कोई स्थायी सम्पत्ति नहीं उत्पन्न करते । अर्थात् उनके द्वारा लगातार सस्थति नहीं उत्पन्न होती रहती । उदाहरण के लिए उपयोगी और ज़रूरी चीजें तैयार करनेवाले बढ़ाई, लोहार, मेसन, किसान, अध्यापक आदि का श्रम लगातार सम्पत्ति उत्पन्न करता है। अतएव इनका श्रम उत्पादक है। पर आतशबाजी तैयार करनेवाले हवाईगर का श्रम उत्पादक नहीं । क्योंकि उसले लगातार सम्पत्ति नहीं पैदा होती ! एकही बार पैदा होकर जल जाती है। कल्पना कीजिए कि एक हवाईगर के पास दस रुपये को पूंजी है। इस पूंजी से उसने आतशबाजी तैयार की और उसे वीस रूपये को बेची। अर्थात् हवाईगर के पास दस के बीस रुपये होगये । पर यह हिसाब ठोक नहीं । क्योंकि जिसने उसे बीस में मोल लिया उसके रुपये भी तो जोड़िए । जोड़ने से दोनों को पूजी मिलाकर तीस रुपये हुए 1 पर इन तीस की जगह बाईगर के पास सिर्फ बोस रुपये रह गये। अर्थात् दस रुपये का घाटा रहा और इस घाटे का बदला या मिला ? आतशबाज़ी छूटने देख मोल लेने- धाले को जो दो चार मिनट मनोरञ्जन या आनन्द हुआ वह । और कुछ नहाँ । अतएव आतशबाजी को तरह की चीज तैयार करने, अथवा गाने धजाने आदि में श्रम करने, से लगातार सम्पत्ति नहीं पैदा होतो । उलटा उससे कम हो जाती है। इसलिए इस तरह का श्रम उम्पादक नहीं । श्रम को सहायता से सम्पत्ति से सम्पत्ति पैदा होती चहिए । ओ लोग अपनी सम्पत्ति को सन्दूकों में बन्द करके छोड़ देने हैं, या ज़मीन में गाड़ रखने हैं, उससे नई सम्पत्ति नहीं पैदा होतो। इसी तरह जी लोग इत्र, फुल, झाह, फानूस और कांच आदि पेशव आराम के सामान नैयार करने या खरी- ६ने में अपनी सम्पत्ति लगाते हैं वह भी उत्पादक नहीं। प्रतएव ऐसे लोग देश के दुश्मन हैं । सम्पत्ति हो इस ज़माने में सबसे बड़ा बल है । जो लोग इस बल का नाश करने हैं वे अपने देश और अपनी जाति के दुश्मन नहीं तो क्या है ? उन्हें तो बहुत बड़ा स्वदेशद्रोही कहना चाहिए । गाने, बजाने, खेल तमाशे करने और किस्से कहानियों की किताबें लिखने में श्रम ज़रूर --