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सम्पत्ति-शास्त्र ।


पड़ता है। पर बतलाइए, ऐसे थम से कौन सी सम्पति उत्पन्न होती है। जरा देर के लिए मनोरजन ज़रूर हो जाता है। बस । किस्से कहानियों की किताबों को बिक्री से बेचनेवाले को कुछ लाभ होने की सम्भावना रहती है। पर यदि उसे लाभ हुमा भी तो किताबे मोल लेनेवालों को हानि के बराबर नहीं हो सकता ! उन लोगों की जो सम्पत्ति ऐसी किताबें लेने में बरबाद जाती है वह यदि किसी और अच्छे काम में लगाई जाय तो कम न होकर उलटा उसको वृद्धि हो।

उत्पादक श्रम ।

अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष. दोनों तरह से,श्रम उत्पादक हो सकता है। अप्र- त्यक्ष श्रम के उत्पादक होने का उदाहरण स्कूल और कालेज के अध्यापकों और अच्छी अच्छी युत्तकें लिखनेवालों का श्रम है । स्कूलों में अध्यापकों के परिश्रम ही की बदौलत विद्यार्थी शिक्षित होने हैं और शिक्षा की मदद से अनेक प्रकार के उद्योग धन्धे करके सम्पत्ति पैदा करते हैं । उत्तमोत्तम पुस्तफा से जो मानवृद्धि होती है, जो तजमवा बढ़ता है, जो अनेक प्रकार की नई नई बात मालूम होती हैं--उससे भी सम्पत्ति प्राप्त करने में मदद मिलती है । प्रनपच प्रत्यागको और अन्धकारों का श्रम सम्पत्ति का अप्रत्यक्ष उत्पादक है।

यहां पर यह एतराज हो सकता है कि स्कूलों में जो लड़के शिक्षा प्राप्त करते हैं उनमें से सभी सम्पत्ति उत्पन्न करने योग्य नहीं होते । कोई कोई अपना पेट पालने में भी असमर्थ होते हैं । उनके सम्बन्ध में नो अध्यापकों का श्रम सम्पत्ति का उम्पादक न हुआ । इस एतराज़ का जवाब यह है कि सम्पत्ति-शास्त्र सिर्फ ध्यापक सिद्धान्त निश्चित करता है, उन सिद्धान्तों की बाधक अवान्तर बाने का विचार नहीं करता। यदि कोई लड़का बहुत हो कुन्दजेहन हो, या बुरो सङ्गति के कारण आवारा हाजाय. या किसी रोग से पीड़ित बना रहे, ना अध्यापकों का श्रम व्यर्थ जा सकता है । पर इससे सिद्धान्त में बाधा नहीं मालकती । क्योंकि यदि ये बाधक कारण न उप- स्थित हों तो अध्यापकों का श्रम ज़रूर उत्पादक हे। काश्तकार, बढ़ई. लेहार आदि का श्रम प्रत्यक्ष उत्पादक है । जिसके कारण जड पदार्थों में चिरस्थायी उपयोगिता पैदा हो जाती है उसी श्रम