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मेहनत ।


जा सकता है। कोई मादी अधिक मज़बूत inना है और अधिक काम करता है, मीर काई कम । अतएव श्रम की उत्पादकता की कमी बेशो बदन की स्वभाविक बनावट पार मजबूती पर बात कुछ अवलम्बिन राती है ।

जिन लेागों या पेट भर बालबधंक नाना मिटता , जानीरोग है, जो इपादार नाक मकानों में रहने हमेशा प्रसाचन प्रारम्बन्ध रहने हैं। प्रतपय अधिक श्रम कर सकन है और उनका श्रम अधिक इन्पादक होता है। योमार. मरभुये पार गन्दं भोपड़ों में मानवाले लेग प्रसान नहीं रहने; उनका चित्त प्रफुटित नहीं रहता: उनका शगेर साल नाता; इससे उनमें मानत कम होती है। जिन देशों के मजदूरों की दशा अच्छी है; जिनको गाने पीने का कए नहीं । नीमार होने पर जिनके दवा-पानी का अच्छा प्रबन्ध प्रांगें शो अपेक्षा अधिक काम कर सकते हैं। ग्राराम प्रा. प्रफुलचित्त पादमी को बुद्धि नेज़ गाना है। इसमें उसके हाथ में भन्दा काम हाना है। परन्तु गश वान ध्यान में रखने लायक है। यह या है कि प्रादमा वाजिनमा सवल, नीगंग, नीयधुद्रि पौर प्रसार चित्त दो वाद जितना अधिक गौर जिनमा पहला अपना काम करेगा उतना दुसरे का नदी प्रान् बुद अपने घर के काम में वह जितना परिश्रम फग्गा उनना मज़- दो लेकर नारी के काम में न करेगा । जो लोग मौतदास हैं, जो जन्म भर के लिए ग्रीन के गुलाम हो गये हैं, वे साधारण मजदूरों से भी फम काम फॉग। इससे उनका काम पार भी कम उम्पादक होगा। मय बाती के बयान से बड़े बड़े कारखानों के मालिक कभी यामां कर पाने के कागेगनें पार मजदूरों को अपना तिममंदार बना लेते हैं। ऐसा करन ने बटुन काम iiता, पयाफि कारण्या के हानि-लाम को श्रमजीवी जन अपनादी शानि- लाभ समझने। इसमें मूनिन हुआ कि श्रम के अधिक उत्पादक होने के लिए जमे नौरोगना. सफाई, और बलवर्द्धक म्याने की जरूरत हो किये जानेवाले काम से श्रमजीवियों के निजके सम्बन्ध की भी जररत है। इन बातों के न होने में भी काम होता है. पर अधिक उत्पादफ नहीं होना ।

जो मज़दूर-जा श्रमजीवी-सदाचरणशील,शराव, कवार और गांजा, भर का जिने चसका नाह . ये अधिक श्रम कर सकते हैं और उनका धम अधिक उत्पादक हाता है । जिनको नशे या और किसी व्यसन का चसका न्टग जाता है उनका पल घट जाता है. उनकी बुद्धि मन्द होजाती है, उनको