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सम्पत्ति-शास्त्र।


करता है। पर उसको दशा नुधरनेहो उसकी कायावली में धीरे धीरे अन्तर उपस्थित हो जाता है। आबादी बढ़ने और झानवृद्धि होने पर एक आदमी सत्र काम खुदही नहीं कर सकता । इसलिए कुछ आदमी कुछ काम करने लगते हैं, कुछ कुछ । सब काम आपस में बँट जाने हैं। कोई तोर बनाने का काम करने लगता है, कोई मकान बनाने का कोई कपड़े नैयार करने का । समाज को दशा सुधरने सुधरते श्रम का यहां नक विभाग हो जाता है कि एक एक व्यावहारिक चीज तैयार करने के लिए एक एक समुदाय अलग हो जाता है । सब लोग अपना अपना पेशा अलग अलग करने लगते हैं। लुहार, बदई, मखन, कुम्हार, सुनार, जुलाई, आदि जितने पेशेवाले है सब इस श्रम विभाग हो के उदाहरण है। जिसका जो पेशा है वही उसकी जाति होगई है।

यह श्रम-विभाग बड़े काम को चीज़ है। इससे सम्पत्ति के उत्पादन में बड़ी मदद मिलता है। थोड़े श्रम और थोड़े झंझट से बहुत सम्पत्ति उत्पन्न होती है। यदि हर आदमी को हर पेशे का काम करना पड़े तो संसार में प्राराम से रहना असम्भव हो जाय । इसीसे श्रम विभाग की जरूरत है । जिस तरह हर पेशे के आदमियों ने श्रम का विभाग करके अपना अपना पेशा अलग कर लिया है. उसी तरह यदि हर देश भी करले ना श्रम को उत्पादक शक्ति बहुत बढ़ जाय और सम्पत्ति की वृद्धि पहले से बहुत अधिक होने लगे । अर्थात् जिस देश में जिस पेशे को सामग्री अधिक हो, अथवा जिस पेशे के कुशल कारीगरों की संन्या अधिक हो, यदि वही पेशा किया जाय तो बहुत लाभ हो।

श्रम-विभाग से वक्त की बचत होती है। किसी काम का कुछ ही ग्रंश सीखने में समय कम लगता है । जिसे लकड़ी का सामान बनाने का पेशा करना है वह यदि मेज़, कुरसी. वाक्स, आलमारी आदि सभी चीजें बनाना सीख ता वरसों लग जायँगे । पर वही यदि कुरसी बनाना सीख कर सिर्फ वही बनाने का पेशा करे तो बहुत थोड़े समय में अच्छो करली बनाना सीख जायगा । जितने पेशे हैं सब का यही हाल है । जितने बड़े बड़े कारखाने हैं सब में श्रम-विभाग का खूब ख्याल जाता है। आप किसी छापेखाने में- जाइए । देखिपगा कि अक्षर जोड़नेवाले, मैशीन चलानेवाले, कागज़ उठाने