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व्यय।

उत्पादक श्रम और उत्पादक व्यय का जोड़ है। इसी तरह अनुत्पादक श्रम और अनुत्पादक व्यय का भी जोड़ है। अतएव जिन्होंने उत्पादक और अनुत्पादक श्रम का तारतम्य अच्छी तरह समझ लिया होगा उन्हें उत्पादक और अनुत्पादक व्यय का तारतम्य समझने में कुछ भी कठिनता न होगी । साधारण नियम यह है कि जिनका श्रम उत्पादक होता है उनका व्यय भी उत्पादक होता है। विपरीत इसके जिनका श्रम अनुत्पादक होता है उनका व्यय भी अनुत्पादक होता है।

उत्पादक श्रम करते समय श्रमजीवियों को अपने खाने. पौने, पहनने और रहने आदि के लिए जो व्यय करना पड़ता है उसी की गिनती उत्पा- दक व्यय में है । यदि कोई मजदूर. कोई श्रमजीवी, कोई आदमी उत्पादक श्रम के दिनों में इन लगाने या मागरे के हार गले में डालने लगे, या ज़री की टोपी पहनने लगे. तो इन चीजों में जो खर्च पड़ेगा वह उत्पादक न समझा जायगा। क्योंकि इनके बिना भी वह उत्पादक श्रम कर सकता है । पर साना खाये. या साधारण कपड़े पहने,या सर्दी गर्मी आदिसे बनने और आराम से रहने के लिए कोई मकान किराये पर लिये, बिना वह काम नहीं कर सकता । अतएव इनके लिए जा खर्च वह करेगा वहाँ उत्पादक समझा जायगा । इससे यह सिद्धान्त निकला कि पेशव आराम की चीज़ों के लिए जा खर्च किया जाता है वह अनुत्पादक है । जो लोग इस तरह की चीज़ों में सम्पत्ति नाश करते हैं वे देश के दुश्मन हैं । उनके खर्च का बदला नहीं मिलता। वह व्यर्थ है । भारतवर्ष आजकल कङ्गाल हो रहा है। इस दशा में भारतवासियों का फर्ज है कि पेश व इशरत के सामान लेकर अमीरी ठाट से रहने की लत छोड़ दें।

किसो किसो का यह बयाल है कि विलास न्यो-पेशव इसरत की चीजों में सम्पति सर्च करने से हानि नहीं। वे कहते हैं कि इन चीजों को खरीदना मानों इनके बनाने या वैचमेघालों को उत्साहित करना है। अर्थात् जो लोग ऐसी चीज़ों का व्यवसाय करते हैं उनके व्यघसाय को तरजी देना और उस व्यवसाय में लगे हुए मजदूरों और कारीगरों का पेट पालना है। यह बड़ी भारी मूल है । कल्पना कीजिए कि कोई लोहार चाक बनाने काम करता है। एक दिन उसने चार चाकू बनाकर बेचे । उनको कीमत उसे एक रुपया मिली । अब यदि इस रुपये का वह अनाज माल ले तो

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