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सम्पत्ति-शास्त्र।


उससे अपना पेट भरके वह और चाफ बना सकता है और उनको बेंच कर अपना रोजगार जारी रख सकता है। पर यदि इसो एक रुपये का वह इत्र ले, या जर्मनी का एक लैम्प यरोदे, तो वह खायगा फ्या? और बिना खाय काम कैसे करेगा? आप कहेंगे कि यदि वह १२ आने का अनाज ले और सिर्फ ४ आने का इत्र, तो उसका काम भी जारी रहे और इत्र लगाने का शोक भी पूरा हानाय । पर आपने क्या इस बात का भी विचार किया है कि इस लोहार के घर में आदमी कितने हैं ? यदि बीस आदमी है तो बारह पाने के अनाज में कैसे पूरा पड़ेगा ? और यदि पूरा भी पड़ जाय तो आपने कैसे जाना कि उसे कपड़ा-लप्ता, नमक, मिर्च मसाला और कुछ दरकार नहीं ? यदि यह लोहार अमीर भी हो तो भी उसे ऐसी चीज़ों में अनुत्पादक भ्यर्च करना मुनासिब नहीं। क्योंकि जो पूँजी उसके पास बच रहेगी उससे यह और कोई उपयोगी काम कर सकता है और देश की सम्पत्ति बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

इससे सिद्ध है कि जो लोग अनुत्पादक व्यय करते हैं उनसे देश को कोई लाभ नहीं पहुंच सकता । वे देश के हितचिन्तक नहीं, पके दुश्मन हैं। क्योंकि अनुत्पादक व्यय करके ये देश की सम्पत्ति का नाश करते हैं । देशके शुभचिन्तक और सच्चे सहायक वही है जो मितव्ययो हैं; जो उत्पादक व्यय करके देश की सम्पत्ति बढ़ाने हैं। इस विषय का सम्बन्ध पूजी से अधिक है। इससे अब इसे यहाँ छोड़ अगले पारच्छेद में पूंजी का विचार करेंगे।

पाँचवा परिच्छेद।
पूँजी ।

सम्पत्ति को उत्पति के लिए जिन तीन चीज़ों की जरूरत होती है उनमें से ज़मीन और मेहनत का बयान हो चुका । पूंजी का वाक़ो है। इसलिए इस परिच्छेद में उसका विचार किया जाता है। मनुष्य की आदिम अवस्था में पूँजी की उतनी जबरत नहीं होती। मछली मार कर. या पेड़ों के फल फूल तोड़कर. असभ्य आदमी अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। परन्तु मनुष्य उन्नतिशील प्राणी है। धीरे धीरे वह