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पूँजी।


जीवन-निर्याह के साधनों में उन्नति कर लेता है । फल यह होता है फि मन्डली मारने के लिए जाल, हिरन का शिकार करने के लिए तीर-कमान, जमीन में कन्द प्रादि मादने के लिए कुदाली इत्यादि चीजें बन जाती है । ये चीजें बहुन दिन नक काम देती । इनकी मदद से या म्याने पीने की नई नई चीजें रोज़ मान करना है। प्रतएव जाल. तोर कमान और कुदाली प्रादि चीजें उसको पूजा दी जानी हैं. क्योंकि जो वह चीज़ है जिसकी मदद से नई नई सम्पत्ति रिदा होनी जाय । फल-फूल. मछली, कन्द आदि को गिनती सम्पत्ति में है। क्योकि यदि ये चोर्जे पास पड़ोस की बस्तियों में लाई जायं तो उनका विनियम ला सकता है। उनके बदले और चीजें मिल सकती।

यह जङ्गाली आदमियों की पूजी का उदाहरण हुआ । सभ्य आदमियों की पूजा और माह को होती है। पर अभिप्राय दोनों का एकही, लक्षण दोनों का पफसा है। अच्छा. एक किसान को न्योक्षिण | कल्पना कीजिए कि उसके पास पांच बीघे जमीन है। उसमें बीज बोने से लेकर अनाज पैदा होने का कछव हुआ उसे देकर उसके परग्स ५० मन अनाज यच गया । इस ५० मन अनाज में से अपनी बृगक, मजदूगों को मजदूगी. दल चैट प्रादि का पर्च चलाकर उसने अगले साल नया अनाज पैदा किया । प्रतएव यही ५० मन अनाज उसकी पूंजो दुई । क्योंकि एसी की बदौलत उसने अनाज के रूप में नई समत्ति पैदा की | अब यदि या ५० मन अनाज घर किसी महाजन में लेकर अपने काम में लाता तो भो उसका नाम पुजीत होना । फ्याँकि महाजन ने भी नो इम अनाज को अपने वर्च मे बचाकर गया होगा। इसमे मिहमा कि भविष्य में नई सम्पत्ति उत्पन्न करने के लिए, पहले उत्पन्न को हुई सम्पत्ति का जो दिमना बनाकर अलग राय दिया जाता है उसी का नाम पूँजी है।

शेत में बीज बोने के दिन से लेकर उसमें उत्पन्न हुआ अनाज घर लाने नक बहुत दिन लगते हैं। नब तक किसान को ग्याने पीने को चाहिए , मज़- दूरी चाहिए; हल, बैल, धरने आदि चाहिए, पहनने को कपड़े, गाने को घर, तथा औजार प्रादि भी चाहिए । इन सबका संग्रह पहले हो से करना शाता है। इनमें अन्न, वस्त्र, बैल-बधिया. हल-फाल, घर-द्वार सब फुल आगया । अतपच इन सबकी गिनती पूंजी में है, सिर्फ अनाजही फी महों।