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पूँजी।


कारण मुख्य हैं । समय और व्यवस्था के अनुसार हर देश में सञ्चय करने की इच्छा न्यूनाधिक होती है । इंगलैंड में दोनों कारणों से लेाग सञ्चय को इच्छा करते हैं। पर इस देश में सिर्फ पहलाहो कारण प्रबल और प्रधान है। यहाँ लोग व्यापार करना अच्छो तरह नहीं जानते । अतएव व्यापार में पूँजी लगाकर उसे बढ़ाने की विशेष इच्छा से वे सञ्चय नहीं करते । सञ्चित सम्पचि आगे काम आवेगी. इसी कारण से वे बहुधा सञ्चय करते हैं। इससे इस देश की बड़ी हानि होती है । पूंजी की वृद्धि नहीं होती। अतएव देश में दरिद्रता का अखण्ड राज्य है।


सञ्चय की इच्छा का प्रबल और निर्बल होना मनुष्य के स्वभाव पर भी बहुत कुछ अवलस्थित हैं। जो लोग असभ्य और अल्पश है वे बहुत कम सञ्चय को इच्छा करते हैं, क्योंकि भावो सुख-दुख का उन्हें शानही नहीं होता: उनमें इतनी समझही नहीं कि आगे की बातों को वे सोच सकें। सभ्य और सशान देश में भी यदि अराजकता है, यदि जान माल का डर है, तो सन्चय करने की इच्छा नहीं होती, क्योंकि सम्पत्ति के लुट जाने का हमेशा दगदगा रहता है । इससे आदमी सञ्चय करने की इच्छा स्वमावड़ी से नहीं रखते। इस देश में बहुत दिनों से अमन चैन है; लटूपाट का बिलकुल डर नहीं। अतएव हम लोगों को चाहिए कि व्यापार-व्यवसाय में भी पूँजी लगाकर उसकी वृद्धि की इच्छा से सञ्चय की आदत डालें।

जिस देश के आदमी कम्पनी खड़ी करना और मिल कर उद्यम-धन्धा करना जानते हैं उस देशवालों की सञ्चयेच्छा अधिक प्रबल होती है। यारप और अमेरिका में यह बात अधिक देखी जाती है । बड़े बड़े व्यवसाय एक आदमी नहीं कर सकता। लाखों करोड़ों की पूँजी एक आदमी नहीं जुटा सकता। इससे बहुत आदमी थोड़ी थोड़ी पूँजी लगाकर कम्पनी खड़ी करते हैं। इससे उनकी पूँजी घेकार नहीं पड़ी रहती। वह बढ़ती जाती है और श्रमजोषियों को लाभ पहुंचाकर देशको अधिकाधिक धनी बनाती है। जो देश व्यापार और अनेक प्रकार के उद्यम करना जानता है उसके निवाली स्वभावहो से सञ्चय करना सीख जाते हैं । उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम रहतो है कि सचित पूँजी को उद्योग-धन्धे में लगाने से वह बढ़ती है। इससे वे दिळोजान से सब्चय करते हैं।