क्योंकि यंत्रों की सहायता से माल अधिक तैयार होता है, जल्द तैयार होता है, और खर्च कम पड़ता है । इससे देश की सम्पत्ति बहुत जल्द बढ़ जाती है । व्यवहार की चीजें सस्ती हो जाती हैं। देश समृद्धिशाली हो जाने से मजदूरों को भी दशा सुधर जाती है । उन्हें अधिक मज़दूरी मिलने लगती है । कानपुर को देखिए । यहां कितनेही कल कारखाने हैं । इनके कारण हजारों श्रमजीवियों का रोजगार मारा गया है। पर इस समय इस शहर की साम्पत्तिक अवस्था यहाँ तक अच्छी होगई है कि एक मामूली कुली भी चार पाने रोज़ से कम नहीं कमाता ।
कुछ पेशेवाले ऐसे हैं जो मुद्दतों से उसी पेशे को करते पाते हैं । उनके
बाप दादे भी कई पोढियों से वही पेशा करते थे जो वे करते हैं। ऐसे लोग
अपने वंशपरम्परा प्राप्त पेशे में बड़े निपुण होते हैं। वह पेशा उनकी रग रग
में बिंधसा जाता है । इससे जो काम ये करते हैं वही यदि किसी पेंच, कल
या यंत्र से होने लगा तो उन्हें बड़ी हानि पहुँचती है । क्योंकि अपने पेशे
को छोड़कर दूसरे पेशे में ऐसे आदमियों की अक्ल. ही अच्छी तरह नहीं
चलती । उदाहरण के लिए लाल को चूड़ो बनानेवाले मनिहारों को
देखिए । जबसे विलायती चूड़ियां इस देश में आने लगों तब से इन लोगों
का रोजगार मारा गया । जिस गाँव में इनके चार घर थे अब एक भी
मुश्किल से टूटे मिलता है । जो लोग रह गये हैं वे अब वही विलायती
चूडियां लेकर बेचते हैं। पर इन चूड़ियों को और भी हज़ारों आदमी बेचने
लगे हैं । इससे इनकी चूड़ियों की बहुत कम बिक्री होती है । और जम्म भर
लास्त्र का काम करते रहने के कारण और कोई पेशा इनसे होता नहीं, और
करते भी हैं तो बहुत कम कामयाब होते हैं । कोरियों और जुलाहों का भी
प्रायः यही हाल है। इससे ये लोग तबाह हो रहे हैं। पर ऐसे उदाहरणों से
मूल सिद्धान्त में बाधा नहीं पाती। सब बातों और सब पेशों का विचार करने
से यह माननाहीं पड़ता है कि चल पूँजी अचल हो जाने से श्रमजीवियों को
जोहानि पहुँचती है वह पाल्पकालिक होती है। देश में सम्पत्ति की वृद्धि
होने से कुछ दिनों बाद उनकी हालत जरूर अच्छी हो जाती है । हाँ एक
वात ज़रूर है कि यदि किसी और देश में चल पूँजी, यंत्र यादि के रूप में,
अचल होगई और वहीं से चीजें होकर किसी देश में आने और सस्ती
बिकने लगी तो उस पेशे के आदमियों की दशा का सुधरना मुश्किल हो
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