पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५७
ज़मीन की शुद्धि।

कुछ ज़मीन ऐसी होती है जिसमें किसी खास किस्म ही को जिन्स पैदा होती है। यदि पेसो जिन्स की खेती न होनेही के कारण ज़मीन पड़ी रह गई हो, और कुछ आदमी उस जिन्स को खेती करने पर कमर चौधे, तो यह पड़ी न रहे । मदरास में कुछ जमीन ऐसी है जिसमे तथा अच्छा होता है। आसाम में और देहरादून के आस पास चाय मच्छी होती है। इन चीज़ों को खेती से हजारों बीघे जमीन जोती चोई जाती है। और उससे लाखों रुपये की आमदनी होती है । यदि चाय और कहवे की खेती न की जाती तो यही जमीन पड़ी रह जाती। अतएव यह सिद्ध हुमा कि खेती के सम्बन्ध में नये नये उपाय, नई नई तरकी, नई नई जिन्सों के पैदा होने की योग्यता मालूम हो जाने से परत्ती जमीन काम में आ जाती है । अर्थात् खेती की । जमीन का रकबा बढ़ जाता है और सम्पत्ति बढ़ाने का कारण होता है।

आवादी बढ़ जाने से तो परती पड़ी हुई बुरी जमीन तक जोतने की ज़रूरत होती है--हाँ जुताई बुधाई और लगान आदि का त्वचे किसी तरह निकाल आना चाहिए । जव आदमियों को संख्या बढ़ जाती है तब व्यवहार की चीज़ों को मांग भी बढ़ जाती है । जिस कुटुम्ब में दस प्रादमी हैं उसमें यदि बारह या पन्द्रह हो जाये तो अधिक अनाज जरूरही पर्च होगा; अधिक कपड़ा जरूरही दरकार होगा। इस दशा में भारत पैसे कृषि प्रधान देश को खेती की जमीन का रकबा बढ़ानाही पड़ेगा। यहां की आबादी बढ़ रही है, देश का अनाज विदेश जारहा है, खाने पीने की चीजें महंगी हो रही हैं। इसोसे परतो ज़मीन को लोग बोतते चले जाते हैं। जहां इस साल बंजर है, अगले साल वहां बाजरा या मोथी का खेत खड़ा मिलता है।

परती जमीन न जोतने का कारण बहुधा यही होता है कि उसकी उपज से खेती का खर्च नहीं निकलता, और यदि निकलता भी है तो किसान को कुछ बचता नहीं । हां यदि परतो ज़मीन की उपज कुछ महँगी विके । लाभ हो सकता है। स्वदेश में अधिक खर्च होने और विदेश से अधिक मांग आने के कारण उपज का भाव बहुधा चढ़ जाता है। जैसा कि इस समय इस देश में होरहा है। इस तरह को महंगी अच्छी नहीं 1 उससे हानि है। और यह हानि पेली है कि एफ को नहीं प्रायः सबको उठानी पड़ती है। क्योंकि अनाज सबको चाहिए । इस हानि से बचने का एक उपाय यह है कि देश की परतो ज़मीन न जोत कर जितना अधिक गल्ला दरकार हो उतना,

8