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भूमिका।

हिन्दुस्तान सम्पत्तिहीन देश है। यहाँ सम्पत्ति की बहुत कमी है। जिधर आप देखेंगे उधर ही आपको दरिद्र-देवता का अभिनय, किसी न किसी रूप में, अवश्य ही देख पड़ेगा। परन्तु इस दुर्दमनीय दारिद्र को देख कर भी कितने आदमी ऐसे हैं जिन को उसका कारण जानने की उत्कण्ठा होती हो? यथेष्ट भोजन-वस्त्र न मिलने से करोड़ों आदमी जो अनेक प्रकार के कष्ट पा रहे हैं क्या उनका दूर किया जाना किसी तरह सम्भव नहीं? गली-कूचों में, सब कहीं, धनाभाव के कारण जो कारुणिक क्रन्दन सुनाई पड़ता है उसके बन्द करने का क्या कोई इलाज नहीं? हर गाँव और हर शहर में जो अस्थिचर्मावशिष्ट मनुष्यों के समूह के समूह आते जाते देख पड़ते हैं उनकी अवस्था उन्नत करने की क्या कोई साधन नहीं? बताइए तो सही, कितने आदमी ऐसे हैं जिनके मन में इस तरह के प्रश्न उत्पन्न होते हैं? उत्तर यही मिलेगा कि बहुत कम आदमियों के मन में। यदि कुछ लोगों को ये बातें खटकती भी हैं तो उनमें से बहुत कम यह जानते हैं कि इस सारे दुख-दर्द का कारण क्या है। बिना सम्पत्तिशास्रीय ज्ञान के इसका यथार्थ कारण जानना बहुत कठिन है और, सम्पत्तिशास्त्र किस चिड़िया का नाम है, यह भी हम लोग नहीं जानते। जानते सिर्फ़ वही मुठ्ठी भर लोग हैं जिन्होंने कालेजों में अंगरेज़ी की उच्च-शिक्षा पाई है। पर ३० करोड़ भारतवासियों के सामने उच्च-शिक्षा-प्राप्त लोगों की संख्या दाल में नमक के बराबर भी तो नहीं। अतएव सम्पत्ति-शास्त्र के सिद्धांतों के प्रचार की यहाँ बहुत बड़ी जरूरत है।

सम्पत्तिशास्त्र पढ़ने और उस पर विचार करके उसके सिद्धान्तों के अनुसार व्यवहार करने से यहाँ की दरिद्रता थोड़ी बहुत ज़रूर दूर हो सकती