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पूँजी की वृद्धि।

 

चौथा परिच्छेद।

पूँजी की वृद्धि।

संसार में पूँजी बड़ी चीज है। बिना पूँजी के कुछ नहीं हो सकता। यदि पूँजी न हो तो ज़मीन और मेहनत का कुछ भी उपयोग न हो सके। और यदि पूँजी की वृद्धि न की जाय तो न ज़मीन ही की वृद्धि हो सके न मजदूरों की संख्या ही बढ़ सके। अतएव सम्पत्ति की वृद्धि के लिए पूँजी की वृद्धि करना सबसे बड़ी बात है।

जैसा पहले कहा जा चुका है, पूँजी सञ्चय का फल है। अथवा यों कहिए कि सञ्चय ही का दूसरा नाम पूँजी है। इससे पूँजी की वृद्धि सर्वथा सञ्चय की वृद्धि पर अवलम्बित रहती है। अब यदि हमें यह मालूम हो जाय कि कब और किस तरह—अर्थात किन कारणों से—संचय की अधिकता होती है तो पूँजी की वृद्धि के नियम जान लेने में कुछ कठिनता न हो। इसलिए हम पहले सञ्चय का ही विचार करते हैं।

सञ्चय करना जैसे हर आदमी के लिए लाभकारी है वैसे ही हर देश के लिए भी लाभकारी है। जो लोग अपनी हविस पूरी करने के लिए—ज़रा देर के काल्पनिक सुखोपभोग के लिए—अपनी सम्पत्ति को फ़िजूल ख़र्च कर देते हैं वे निरे मूर्ख हैं। आदमी को हमेशा आगे का ख़याल रखना चाहिए। छोटे छोटे कीट पतंग तक सञ्चय करते है। मधु-मक्खियाँ महीनों के लिए शहद बनाकर रखती हैं और चींटियाँ अनाज आदि इकट्ठा करके अपने बिलों में रख छोड़ती हैं। क्या आदमी इससे भी गया गुजरा है? क्या यह ऐसे छोटे छोटे प्राणियों से भी सबक़ नही ले सकता। सज्ञान होने का घमण्ड रखकर भी यदि आदमी भविष्य का कुछ भी ख़याल न करे तो बड़े अफ़सोस की बात है। तो उससे, इस विषय में, मक्खियाँ और चीउँटियाँ ही अच्छी। सञ्चित सम्पत्ति के लुट जाने का डर तो है ही नहीं, अँगरेज़ी गवर्नमेंट की कृपा से देश में सब कहीं अमन चैन है। और न हमारे देशवासी आस्ट्रेलिया, फीजी या आफ़रीक़ा के जंगली आदमियों काी तरह असभ्य और अज्ञान ही हैं, जो भविष्य की आवश्यकतायें उनकी समझही में न आती हों। फिर सञ्चय की इस देश में इतनी कमी क्यों? इसके कई कारण हो सकते हैं। उनमें से एक दरिद्रता है। जो दरिद्री है, निर्धन है,सम्पत्ति-हीन या