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मालियत और क़ीमत।


चीज़ उसे दरकार होती है ले आता है। इस चीज़ का नाम रुपया था सिका है।

बदले के लिए कम से कम दो चोजें ज़रूर दरकार होती हैं । जब हम यह कहते हैं कि किसी चीज़ का बदला हो सकता है, तब हमारे कहने का मतलब यह है कि इस चीज़ का बदला किसी और चीज़ से हो सकता है। इसी तरह जब हम यह कहते हैं कि अमुक चीज़ इतनी बिकती है तब हम उस चीज़ का भी परिमाण बतलाते हैं जो उसके बदले में दी जाती है । इस पिछली उक्ति से परस्पर बदली जानेवाली दो चीज़ों की मालियत जाहिर होती है । रुपया इसी मालियत या क़ीमत के नापने का पैमाना है। मतएष मालियत और कीमत का ठीक ठीक अर्थ समझ लेना चाहिए ।

दूसरा परिच्छेद ।
मालियत और कीमत ।

अव दो चीजों का बदला किया जाता है तब रुपये को मध्यस्थ होना पड़ता है। मान लीजिए कि बाप के पास पाँच मन चावल फालतू है। उसे येच कर आपने रुपया ले लिया और उस रुपये को देकर कपड़ा खरीदा। इससे कपड़े और चावल का बदला हो गया । रुपये ने बीच में पड़ कर इस अदला-बदल को सिर्फ सहायता पहुँचाई। अब देखना है कि यह सहायकरुपया ज्या चीज़ है ? पर उसके विषय में कुछ कहने के पहले इस बात का विचार करना ज़रूरी है कि कीमत क्या चीज़ है । क्योंकि कोमत चुकाने ही के लिए रुपये से सहायता ली जाती है । कीमत और मालियत में फर्क है।

कल्पना कीजिए कि एक सेर घी के बदले चार सेर शक्कर मिलती है। अर्थात् एक रुपये में जैसे एक सेर घी आता है वैसे ही चार सेर शक्कर । ती इससे यह सूचित हुआ कि एक सेर घी को मालियत या कदर चार सेर शकर को मालियत या क़दर के बराबर है। प्रत्यक्ष यह कहना चाहिए कि मालियत से दो चीजों की परस्पर तुलना का.अर्थ निकलता है ।

जब यह मान लिया गया कि मालियत से तुलना या मुकाबले का अर्थ निकलता है तब यह भी मान लेना होगा कि जिन दो चीज़ों की तुलना की