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मालियत और की़मत।

करना है उसमें कमी-यशी होने से। पहला भीतरी कारण है । दूसरा बाहरी। एक सेर बी के बदले चार सेर शकर मिलती थी। यदि चार के बदले अब वह पाठ सेर मिलने लगे तो समझना चाहिए कि घी को कदर बढ़ गई है। उसकी मालियत पहले की अपेक्षा अधिक हो गई है। इसके वही दो कारण हो सकते हैं । अर्थात् या तो पहले की अपेक्षा धी आधा ही पैदा हुआ या शकर दूनी पैदा हुई। दोनों में से एक कारण ज़रूर होना चाहिए । कारण कोई हो. फल एक ही होगर । घी कम पैदा होने से जो उसकी क़दर बढ़ जायगी सो भीतरी कारण से । घो पूर्ववत् बना रहकर यदि शक्कर दूनी पैदा होगों तो चो की मालियत शकर के बृद्धि-रूप बाहरी कारण से बढ़ जायगी । अर्थात् घी में कुछ भी कमी बेशी न होकर जो चीज़ उसके बदले में आती थी उसके अधिक हो जाने से क़दर बढ़ेगी। एक सेर घी के बदले चार लेर शकर बस होती थी। पर घी कम होने से शकर आठ सेर हो गई । अब यदि शबार दुनी पैदा हो तो भी वही बात होगी। इससे मालूम हुआ कि दोनों तरह से घी की मालियन बढ़ गई। पर घी की मालियत बढ़ जाने से शकर की मालियत कम हो जानो ही चाहिए । क्योंकि एक सेर घी के वदले जितनो शकर पहले आती थी उससे अब दूनी आने लगी। अर्थात् पहले की अपेक्षा अब शकर सस्ती हो गई उसकी मालियत घट गई।

इस प्रतिपादन से यह सिद्ध हुआ कि कीमत और मालियत या क़दर में फर्ज है 1 जहां दो चीज़ों का आपस में मुकाबला होता है वहाँ "मालियत" या "कदर" का अर्थ गर्मित रहता है । पर जहाँ किसी चीज़ के बदले में रुपये पंस से मतलब होता है वहाँ "कीमत" का अर्थ सूचित होता है। यह इतना झंझट हमें अंगरजी शब्द " Vulne" और “Price" फा भेद समझाने के लिए करना पड़ा । सम्पत्ति-शास्त्र हिन्दी में बिलकुल हो नई चीज़ है । वह अंगरेजी भाषा की बदौलत हमें प्राप्त हुआ है। और अँगरेजी में पूर्वोक्त दोनों शब्दों के अर्थ में भेद है । “Vinine" का अर्थ मालियत है और * Price" का कीमत । इसी से क़ीमत और मालियत का तारतम्य बतला देना हमने मुनासिब समझा । इन दोनों शब्दों के अर्थ को लोग यथाक्रम “माल" और "दाम" शब्दों ने भी सूचित करते हैं। पर आगे चलकर हम बहुधा मालियत---" Value ".-- के