पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/९

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भूमिका ।

है। अच्छी तरह शिक्षा न मिलने और सम्पत्तिशास्त्र का ज्ञान न होने से हम लोग अपनी कमजोरियों की नहीं जान सकते, और देश की दशा क्यों ख़राब हो रही है, इसके कारणों को नहीं समझ सकते । बिना निदान का ज्ञान हुए किसी रोग की चिकित्सा नहीं हो सकती। इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है कि जिन देशों या जिन जातियों ने अपनी आर्थिक बात का विचार नहीं किया—अपने देश के कला-कौशल और उद्योग-धन्धे की उन्नति के उपाय नहीं सोचे-उनकी दुर्दशा हुए बिना नहीं रही । अपनी आर्थिक अवस्था को सुधारना ही इस समय हम लोगों का प्रधान कर्तव्य है । अनेक रोगों से पीड़ित और अभिभूत इस हिन्दुस्तान के लिए इस समय यही सबसे बड़ी औषधि है । यदि यह औषधि उपयोग में न लाई गई तो हमारी और भी अधिक दुर्दशा होने में केाई सन्देई नहीं। अतएव भारतवासियों को यदि दुनिया की अन्यान्य जातियों में अपना नाम बना रखने की ज़रा भी इच्छा हो तो उन्हें चाहिए कि वे सम्पत्तिशास्त्र का अध्ययन करें, और सेाचें कि कौन बातें ऐसी हैं जो हमारी उन्नति में बाधा डाल रही हैं । इँगलैंड में छोटे छोटे बच्चों तक को भी सम्पत्तिशास्त्र के मोटे मोटे सिद्धान्त सिखलाये जाते हैं। वहां के विद्वानों की राय है कि अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध किसी के भी सभ्यत्तिशास्त्रीय ज्ञान से वञ्चित रखना बुद्धिमानी का काम नहीं। क्यों न, फिर, इँगलैंड दुनिया भर में सबसे अधिक सम्पत्तिमान् हो ?

जितने शास्त्र हैं सब की रचना धीरे धीरे हुई है। कैाई शास्त्र एकदम ही नहीं बना। दुनिया में अनेक प्रकार के व्यवहार होते हैं। जिसको जो व्यवहार अच्छा लगता है वह उसेही करता है। प्रत्येक व्यवहार का भला या बुरा जैसा परिणाम होता है तदनुसार ही लोग उसका अनुगमन या त्याग करते हैं । लाभदायक ध्यवहारों को वे स्वीकार कर लेते हैं और हानिकारक व्यवहारों को छोड़ देते हैं । हर आदमी अपने तजरुबे से लाभ उठाता है। धीरे धीरे इन्हीं तजरुबे की मदद से शास्त्र बनते हैं। पहले मनुष्यों के अनुभव के अनुसार साधारण नियम निश्चित होते हैं, फिर, कुछ समय बाद, उन्हीं नियम के एकीकरण से शास्त्र की उत्पत्ति होती है। वैद्यकशास्त्र, भाषाशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, कृषिशास्त्र, सम्पत्तिशास्त्र आदि शास्त्र सब इसी तरह बने हैं।