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सिका।

घिसने ही का डर रहता है। चाँदी और सोना कीमती मी बहुत होते हैं; उन्हें पाने की सबको इच्छा भी होती है । देखने में भी वे अच्छे होते हैं। उन्हें चाहे जब तक रखो, ऐसा कभी नहीं होता कि उनकी कुछ भी कीमत न आवे । सोने-चांदी के गुण में भी कभी फर्क नहीं पड़ता। चाँदी या जो सोना स्मरा है वह हमेशा जरा ही बना रहता है । यदि उनमें किसी खराब धातु का मैल कर दिया जाय तो आग में तपाने से फौरन मालूम हो जाता है। सोने-चाँदी में विभाग किये जाने की भी योग्यता है। उनके चाहे जितने टुकड़े करके सिक्के लगा. सब टुकड़े की कीमत वही होगी जो कि टुकड़े किये जाने के पहले कुल की कीमत थी । इन धातुओं के सिक्कों को थोड़े ही तरिके से सब लोग परख सकते हैं और खोटों को खरों से अलग कर सकते हैं। एक और बड़ा भारी गुण इनमें यह है कि इनकी कीमत जल्द जल्द नहीं बदलती।

हिन्दुस्तान में कुछ दिनों से चाँदी के सिक्के का सहायक एक सोने का सिक्का भी जारी किया गया है। उसका नाम है "सावरन" । सोने का एक सिक्का चांदी के १५ रुपये की कीमत का होता है। बड़ी बड़ी रकम सोने के सिक्के में, और छोटी छोटी चांदी के सिक्के में चुकाई जा सकती हैं। चाँदी के सिक का सहायक ताव का सिक्का भी इस देश में जारी है। जो रकम रुपये से कम है ये ताँ का सिक्का, अर्थात् प्रैसा, देकर चुकाई जाती हैं।

किसी किलो अर्थ-शास्त्रचेता की राय है कि विनिमय-साध्य चीजों का मोल नापने के दो परिमाण होने चाहिए । अर्थात देश में दो चीज़ों के सिक्के जारी होने चाहिए । परन्तु इससे बड़ी हानि होने की सम्भावना रहती है। यदि दो तरह के सिक्के बनाये जायेंगे तो दो तरह की धातुओं के बनाये जायेंगे। अतएव यदि एक तरह के सिक्कों को घातु किसी कारण से सस्ती हो जायगी तो उसके सिक्के लेने से लोग संकोच करेंगे । कल्पना कीजिए कि किसी देश में सोने और चाँदी दोनों के सिक्के जारी हैं और सोने का एक सिक्का चाँदी के दस सिक्कों के बराबर है। रामदत्त ने शिवदत्त से १०० सिके सोने के उधार लिए । एक वर्ष बाद चाँदी सस्ती हो गई। इस कारण वह १०० सिक्के सोने के न देकर १००० लिक्के चांदी के देने चला । इस दशा में शिवदत्त यदि चाँदी के सिक्के ले लेगा तो उसकी हानि होगी । इधर रामदत्त को लाभ होगा । क्योंकि सस्ते भाव से चाँदी मोल लेकर थोड़े ही खर्च से सरकारी