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पदार्थों की कीमत ।


करेंगे । यहाँ पर हम सिर्फ व्यापार की वस्तुओं को कीमत पर कुछ लिखेंगे । विक्रय वस्तुओं की कीमत किस तरह निश्चित होती है, सिर्फ इसी विषय का थोड़ा सा विवेचन करेंगे।

जव तक कोई चीज़ चिनिमय-साध्य नहीं होती तब तक उसके बदले दूसरी चीज़ नहीं मिलती। दो मन गेहूँ की जरूरत होने से बढ़ई एक हल बनाकर किसान के हाथ येच देता है और गेहूँ ले लेता है। इसका कारण यही है कि बढ़ई को गेहूँ को आवश्यकता है और किसान को हल को। और ये दोनों चीजें ऐसी हैं कि मुफ्त में पड़ो नहीं मिलती। इनकी प्रचुरता नहीं है। अतएव पदार्थों को विनिमय-सात्य बनाने के लिए दो बातें होनी चाहिप:-

आवश्यकता और अप्रचुरता ।

पहली बात आवश्यकता है। पदार्थों के विनिमय-साध्य होने के लिए आवश्यकता का होना पहला गुण है। बिना आवश्यकता के आदमी कोई चीज़ नहीं लेता। जिसकी ज़रूरत ही नहीं है जिसका कोई प्रयोजन ही नहीं है-उसे लेकर क्यों कोई अपनी चीज़ बदले में देगा! जिस चीज़ में आदमी की कोई जरूरत या इच्छा पूर्ण करने का गुण नहीं, उसके लिए उसको कीमत भी कुछ नहीं । जब तक कोई चीज़ इस इम्तहान में "पास" म हो ले तव तक उसकी गिनती कीमती, कादर रखने वाली, या विनिमय- साध्य चीज़ों में नहीं हो सकती।

दूसरी बात अप्रचुरता है। अर्थात् जो चीजें अनायास अधिक परिमाण में नहीं प्राप्त हो सकती उन्हीं की क़दर होती है, उन्हीं की क़ीमत पाती है। वहो चिनिमय-साध्य होती हैं । अप्रचुरता और आवश्यकता का गुण न होने से चीज़ के बदले चोज़ नहीं मिल सकती। कल्पना कीजिए कि आपको कोई चीज़ दरकार है। परन्तु वह जितनी चाहिए उतनी बिना परिश्रम के अनायास ही मिल सकती है । इस दशा में जो घोज़ परिश्रम से मिलती है उसका बदला ऐसी चीज़ से कभी न होगा। हवा ऐसी चीज़ है कि बिना परिश्रम के मिल सकती है। उसके बदले कोई और चीज़ नहीं मिल सकती। परन्तु यही हवा यदि हमें अधिक परिमाण में दरकार हो ता परनाकुली रखना पड़ेगा। हमको अधिक हवा पहुँचाने में उसे परिश्रम पड़ेगा ।