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पदार्थों की कीमत ।

लाद कर. या सिर पर रखकर. शहर में बेचने ले जाता है। वह देखता है कि इसकी कटती कहा है इसका नप कही है। जहां लोगों को उसकी जरूरत होती है वहाँ ले जाता है। अर्थात् दुष्प्राप्य या अप्रचुर परिमाण में होने से उसे प्राप्त करने में जहां मेहनत पड़ती है यहाँ वह क़ीमती समझी जाती है और चदी उसको कटती होती है। इसी कटती के तारतम्य के अनुसार कहाँ दो पाने, कहीं चार आने, काही आठ पाने और कहीं बारह पाने फी गाड़ी मिट्टी विकती है। जहां चार आने देने से एक गाड़ी मिट्टी मिलती है यहाँ यदि उसकी कीमत दो ही आने कर दी जाय तो जरूर करती बढ़ेगी। क्योंकि ज़रूरत को चोड़ों की कीमत कम होने से ही लोग उन्हें अधिक न्वरोदन है।

संग्रह और खप ।

बपकी अपेक्षा माल कम होने से लेने वाले चढ़ा ऊपरी करने लगते हैं। चीज़ धौड़ा और वरीदार अधिक होने से ऐसा होना ही चाहिए। क्योंकि जो चीज़ जिसे दरकार होती है यह यही चाहता है कि पौरों को मिले चाहे न मिले, मुझे मिल जाय । इस चढ़ा ऊपरी के कारण माल को कीमत चढ़ जाती है-उसका भाव महंगा हो जाता है। परन्तु सब बानों की सोमा होता है। कल्पना कीजिए कि किसी साल अनाज कम पैदा हुआ। इससे बाज़ार में बेचने के लिए उसको आमदनी भी फम हुई। अनाज ऐसी चीज़ है कि नादिए सत्र को। उसके बिना किसी तरह काम नहीं चल सकता । अतएव नप अधिक होने से उसका भाव चढ़ने लगा। चढ़ते चढ़ते बहुत महंगा हो गया। यहां तक कि रुपये का ५ सेर गेहूँ बिकने लगा। पर इसके पहले ही गरीब आदमी लोटा-थाली, वरन-आभूषण, यंच कर भूखों मरने लगेंगे । अतएव व माये का ५ सेर गेहूँ या ६ सेर मकई .. ले सकेंगे। फल ग्रह होगा कि खरीदार कम हो जायेंगे। जो लोग म्पये का ५ या ६ सेर अनाज ले सकेंगे बहो लेंगे। इससे अनाज का भाव थम जायगा । अर्थात् संग्रह और मनप का समीकरण हो जायगा।

पुराने जमाने में जब अन्न वात महंगा हो जाता था और लोग भूग्यों मरने लगने थे तब राजा अन्न की रफूतनी धन्द कर देता था। घह हुक्म दे देता था कि देश से बाहर अन्न न जाय । अथवा यदि वह ऐसा न करता