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सम्पत्ति-शास्त्र।

था तो विदेश जाने वाले अन्न पर इतना अधिक कर लगा देता था कि बाहर भेजने से अन्न के व्यापारियों को नुकसान होता था। इससे अन्न की रफूतनी बन्द हो जाती थी। और रफ़तनो का बन्द होना ही मानों उसका खप कम हो जाना है। इस दशा में खप कम होने, अर्थात् अनाज मोल लेकर बाहर भेजने वाले व्यापारियों को संख्या घट जाने, से फिर अनाज का भाव गिर जाता था। गिरते गिरते खप और संग्रह का समीकरण हो जाता था। अर्थात् जितना संग्रह उतना ही खप हो जाने से अनाज को क़ीमत स्थिर हो जाती थी । पर आज कल का ज़माना ठहरा अँगरेजी। इस देश वाले चाहे भूखों मर जायें, विदेश माल भेजना बन्द नहीं होता । क्योंकि हमारी सरकार ने निर्वन्धरहित व्यापार जारी कर रखा है। अनाज का भाव महँगे से महँगा हो जाने पर भी वह दस्तंदाजी नहीं करती । इससे जहाज या रेल के द्वारा और देशों या प्रान्तों से अन्न आये. या नया पैदा हुए, बिना उसका भाव नहीं गिरना। पर इनमें से एक भी कारगण उपस्थित होने से वह जरूर गिर जाता है।

इसी तरह आमदनी और ग्यप के अनुसार सब चीज़ों का भाव चढ़ा उत्तरा करता है । खप की अपेक्षा आमदनी अधिक होने से यह गिरता है और कम होने से बढ़ता है। नप और आमदनी का समीकरणा अर्थात् समय होनेहीं से प्रायः सब चीजों की कीमत निश्चित होती है। जब किसी चीज़ की कीमत चढ़ जाती है तब खप के अनुसार ही चढ़ती है और जब कम हो जाती है तब भी बप के अनुसार ही कम होती है। फल रुपये का दस सेर गेहूं बिकता था पर आज नौ सेरही रह गया 1 तो आज की यह तेजी आज के खप के अनुसार हुई। अब यदि कल ग्यारह सेर हो जाय तो यह मन्दी कल की खप के अनुसार होगी । मतलब यह कि पदार्थों की कीमत हमेशा आमदनी और खप के ही तारतम्य पर अचलस्थित रहती है।

अच्छा इस मांग या खप का मतलब क्या है? इसका मतलब किसी चीज़ के उस निश्चित परिमाण या बज़न से है जो किसी निश्चित कीमत पर मोल लिया जाय । पर, हाँ, उस क़ीमत को देने की शक्ति मोललेनेवाला रखता हो । अर्थात् उस निदिचत परिमाण को मोल लेने के लिए उसके पास काफ़ी रुपया हो । इस लक्षण में "निश्चित कीमत" ये दो शब्द याद रखने लायक हैं। क्योंकि यदि कीमत में कमोबेशी होगी तो येचीजानेवाली चीज़