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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मालूम होता है कि बेचारे भारतीय व्यापारियोंकी सादगी, उनका शराबसे पूरा-पूरा परहेज, उनकी शान्तिमय और, सबसे अधिक, व्यवस्थित तथा मितव्ययी आदतें, जो उनकी सिफारिशका काम करनेवाली होनी चाहिए थीं, सचमुच उनके खिलाफ इस तमाम तिरस्कार और घृणाका मूल हैं। तिसपर वे ब्रिटिश प्रजा हैं। क्या यह ईसाइयतके अनुकूल है, क्या यह औचित्य है, क्या यह न्याय है, क्या यह सभ्यता है? मुझे उत्तर ढूंढ़े नहीं मिलता।

आप इसे प्रकाशित करेंगे, इस आशाके साथ धन्यवाद,

आपका,

मो° क° गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल एडवर्टाइजर, २३-९-१८९३

 

२८. पत्र : नये गवर्नरके स्वागतमें

टाउन हाल
डर्बन
२८ सितम्बर, १८९३

सेवामें,
परमश्रेष्ठ
सर वॉल्टर हेली-हचिन्सन, के° सी° एम° जी°, आदि

महानुभावसे निवेदन है कि,

सम्राज्ञीके प्रतिनिधिको हैसियतसे इस उपनिवेशमें आगमनके अवसरपर हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले मुसलमान और भारतीय समाजके सदस्य अत्यन्त आदरके साथ महानुभावका स्वागत करते हैं।

हमें विश्वास है कि महानुभाव इस उपनिवेशको तथा इसके सम्पर्कको अनुकूल पायेंगे। और यहाँ नये रूपका शासन जारी करनेका काम महानुभावके लिए उतना ही सरल होगा, जितना कि दिलचस्प।

नेटालमें भारतीय प्रभाव अधिकाधिक फैल रहा है। उसके कारण यहाँके भार-तीयोंके विशेष मामलोंपर महानुभावका ध्यान निरन्तर रहेगा ही। हम, महानुभावकी अनुमतिसे, पहलेसे ही महानुभावकी उदारताका आश्वासन ग्रहण करते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि सम्राज्ञीके प्रतिनिधिकी हैसियतसे महानुभाव हमारे साथ वह उदारता बरते बिना न रहेंगे।